"शास्त्र": अवतरणों में अंतर

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व्यापक अर्थों में किसी विशिष्ट विषय या पदार्थसमूह से सम्बन्धित वह समस्त ज्ञान जो ठीक क्रम से संग्रह करके रखा गया हो, '''शास्त्र''' कहलाता है। जैसे, भौतिकशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, प्राणिशास्त्र, अर्थशास्त्र, विद्युत्शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र आदि। इस अर्थ में यह '[[विज्ञान]]' का [[पर्यायवाची|पर्याय]] है।
 
किन्तु [[धर्म]] के सन्दर्भ में, 'शास्त्र' [[ऋषि]]यों और [[मुनि]]यों आदि के बनाए हुए वे प्राचीन ग्रंथों को कहते हैं जिनमें लोगों के हित के लिये अनेक प्रकार के कर्तव्य बतलाए गए हैं और अनुचित कृत्यों का निषेध किया गया है। दूसरे शब्दों में शास्त्र वे धार्मिक ग्रंथ हैं जो लोगों के हित और अनुशासन के लिये बनाए गए हैं। हिन्दुओं में वे ही ग्रंथ 'शास्त्र' माने गए हैं जो [[वेद]]मूलक हैं ।हैं। इनकी संख्या १८ कही गई है और नाम इस प्रकार दिए गए हैं—[[शिक्षा (वेदांग)|शिक्षा]], [[कल्प]], [[व्याकरण]], [[निरुक्त]], [[ज्योतिष]], [[छंद]], [[ऋग्वेद]], [[यजुवेंद]], [[सामवेद]], [[अथर्ववेद]], [[मीमांसा]], [[न्याय]], [[धर्मशास्त्र]], [[पुराण]], [[आयुर्वेद]], [[धनुर्वेद]], [[गांधर्ववेद]] और [[अर्थशास्त्र]] । इन अठारहों शास्त्रों को 'अठारह विद्याएँ' भी कहते हैं ।हैं। इस प्रकार हिंदुओं की प्रायः सभी धार्मिक पुस्तकें 'शास्त्र' की कोटि में आ जाती हैं ।हैं। साधारणतः शास्त्र में बतलाए हुए काम विधेय माने जाते है, और जो बातें शास्त्रों में वर्जित हैं, वे निषिद्ध और त्याज्य समझी जाती हैं।
 
'शास्त्र' शब्द ‘शासु अनुशिष्टौ’ से निष्पन्न है जिसका अर्थ 'अनुशासन या उपदेश करना' है।