"श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन ने 8 अक्तूबर, 1962 को [[विजयादशमी]] के दिन [[दिल्ली]] में संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की, जिसमें डॉ0 मण्डन मिश्र को विद्यापीठ का विशेष कार्य अधिकारी व निदेशक नियुक्त किया गया। सम्मेलन में लिये गए निर्णय के अनुसार अखिल भारतीय संस्कृत विद्यापीठ नाम से एक पृथक् संस्था स्थापित की गई ।गई। इसके संस्थापक अध्यक्ष स्वर्गीय प्रधनमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे। विद्यापीठ के विकास में स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रधनमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने इस विद्यापीठ को अन्तर्राष्ट्रीय संस्था बनाने की घोषणा की।
शास्त्री जी की मृत्यु के पश्चात् भूतपूर्व प्रधनमंत्री श्रीमती [[इन्दिरा गांधी]] ने विद्यापीठ की अध्यक्षता स्वीकार की ।की। उन्होंने घोषणा की कि 2 अक्तूबर, 1966 से विद्यापीठ को श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ के नाम से जाना जाएगा। 1 अप्रैल, 1967 को विद्यापीठ का अधिग्रहण [[भारत सरकार]] ने किया और 21 दिसम्बर, 1970 को यह '''राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान''' एक पंजीकृत स्वायत्त संस्था का अंग बन गया तथा '''श्री लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ''' नाम से कार्य करने लगा।
विद्यापीठ के कार्य तथा इसके बहुमुखी विकास से प्रभावित होकर मार्च, 1983 में भारत सरकार ने इसको [[मानित विश्वविद्यालय]] का स्तर देने का प्रस्ताव रखा। अंततः आवश्यक परीक्षण एवं अन्य औपचारिकताओं के पश्चात् भारत सरकार ने [[विश्वविद्यालय अनुदान आयोग]] की सिपफारिश पर नवम्बर, 1987 में विद्यापीठ को मानित विश्वविद्यालय का स्तर प्रदान किया।
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संस्कृत अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए साध्न प्रस्तुत करेगा और संस्कृत शिक्षा के शैक्षिक पहलुओं पर शोध का संचालन करेगा।
 
एशिया की उन भाषाओं एवं साहित्य के लिए सुविधएं उपलब्ध करायेगा, जिनका संस्कृत अध्यापन से सम्बन्ध है ।है। जैसे- पाली, इरानी, तिब्बती, मंगोली, चीनी, जापानी आदि।
 
विभिन्न विषयों के लिए पाठ्यक्रम निर्धरित करेगा, जिनमें भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर ध्यान रखा जायेगा तथा संस्कृत और संब( विषयों में परीक्षाओं का संचालन करेगा।
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* आधुनिक ज्ञान-विज्ञान संकाय
 
तीन संकायों में विभिन्न संस्कृत विषयों में 'शास्त्री', (शास्त्रों में विशेषज्ञ) नामक उपाधि हेतु त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम एवं स्नातकोत्तर उपाधि हेतु 'आचार्य' नामक द्विवर्षीय पाठ्यक्रम के अध्ययनाध्यापन की व्यवस्था की गई है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान संकाय में 'शिक्षा शास्त्री' नामक एकवर्षीय अध्यापक-प्रशिक्षण-पाठ्यक्रम तथा शिक्षाशास्त्रा में अध्ययन हेतु शिक्षाचार्य नामक एकवर्षीय पाठ्यक्रम का प्रवर्तन किया गया है। संस्कृत की विभिन्न शाखाओं में शोध कार्य करने वाले शोधर्थी, किसी भी संकाय में प्रवेश ले सकते हैं ।हैं। विद्यापीठ में शोध एवं प्रकाशन का एक स्वतन्त्रा विभाग है, इसमें देश के मूधर्न्य विद्वानों की उत्कृष्ट रचनाओं का प्रकाशन होता है। शोध-पत्रिका शोध-प्रभा का प्रकाशन भी इसका उल्लेखनीय बिंदु है ।है। 1994-95 के सत्रा से विद्यापीठ में शास्त्री पाठ्यक्रम के साथ-साथ व्यावसायिक संस्कृत, व्यावसायिक हिन्दी एवं कम्प्यूटर प्रयोग के पाठ्यक्रम तथा विभिन्न प्रमाणपत्रीय पाठ्यक्रम नियमित रूप से चल रहे हैं। कुलपति प्रो0 वाचस्पति उपाध्याय तथा कुलाध्पिति न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती के सक्षम दिशा-निर्देशन व नेतृत्व में विद्यापीठ निरन्तर विकासोन्मुख है ।है।
 
== इन्हें भी देखें ==