"समर्थ रामदास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Sajjangad_ramdas.jpg|thumb|प्रभु श्री रामचंद्र जी]]
[[चित्र:Sajjangad samadhi.jpg|thumb| समर्थ रामदास स्वामीजी कि समाधी]]
अपने जीवन का अंतिम समय उन्होंने सातारा के पास परळी के किले पर व्यतीत किया। इस किले का नाम सज्जनगढ़ पड़ा।तमिलनाडु प्रान्त के तंजावर ग्राम में रहने वाले 'अरणिकर ' नाम के अंध कारीगर ने प्रभु श्री रामचंद्र जी,माता सीता जी, लक्ष्मण जी कि मूर्ति बनाकर सज्जनगढ़ को भेज दी। इसी मूर्ति के सामने समर्थजी ने अंतिम पांच दिन निर्जल उपवास किया ।किया। और पूर्वसूचना देकर माघ वद्य नवमी शालिवाहन शक १६०३ सन १६८२ को रामनाम जाप करते हुए पद्मासन में बैठकर ब्रह्मलीन हो गए ।गए। वहीं उनकी समाधि स्थित है।यह समाधी दिवस 'दासनवमी' के नाम से जाना जाता हैं ।हैं। यहाँ पर दास नवमी पर 2 से 3 लाख भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
 
प्रतिवर्ष समर्थ रामदास स्वामी के भक्त भारत के विभिन्न प्रांतों में 2 माह का दौरा निकालते हैं और दौरे में मिली भिक्षा से सज्जनगढ़ की व्यवस्था चलती है।
 
== व्यक्तित्व ==
समर्थ जी का व्यक्तित्व भक्ति ज्ञान वैराग्य से ओतप्रोत था ।था। मुखमण्डलपर दाढ़ी तथा मस्तकपर जटाएं, भालप्रदेश पर चन्दन का टिका रहता था ।था। उनके कंधेपर भिक्षा के लिए झोली रहती थी ।थी। एक हाथ में जपमाला और कमण्डलु तथा दूसरे हाथ में योगदण्ड (कुबड़ी ) होती थी ।पैरोंमेंथी।पैरोंमें लकड़ी कि पादुकाए धारण करते थे ।थे। योगशास्त्र के अनुसार उनकी भूचरी मुद्रा थी ।थी। मुखमें सदैव रामनाम का जाप चलता था और बहुत कम बोलते थे ।वेथे।वे संगीत के उत्तम जानकार थे ।थे। उन्होनें अनेको रागोमें गायी जानेवाली रचनाएं कि हैं ।हैं। आप प्रतिदिन १२०० सूर्यनमस्कार लगाते थे इस कारण शरीर अत्यंत बलवान था ।जीवनथा।जीवन के अंतिम कुछ वर्ष छोड़कर पूरे जीवम में वे कभी एक जगह पर नहीं रुके ।रुके। उनका वास्तव्य दुर्गम गुफाएं,पर्वत शिखर,नदी के किनारें तथा घने अरण्यमें रहता था ।था। ऐसा समकालीन ग्रंथमें उल्लेख है ।है।
 
==ग्रन्थरचना==
समर्थ रामदास जी ने दासबोध,आत्माराम, मनोबोध आदि ग्रंथोंकिं रचना है ।समर्थहै।समर्थ जी का प्रमुख ग्रन्थ 'दासबोध ' गुरुशिष्य संवाद रूप में है ।है। यह ग्रंथराज उन्होनें अपने परमशिष्य योगिराज कल्याण स्वामी के हाथोंसे महाराष्ट्र के 'शिवथर घल (गुफा)' नामक रम्य एवं दुर्गम गुफा में लिखवाया ।लिखवाया। इसके साथ उनके द्वारा रची गयी ९० से अधिक आरतियाँ महारष्ट्र के घर घर में गायी जातीं हैं ।हैं। आपने सैंकड़ो 'अभंग' भी लिखें हैं ।समर्थजीहैं।समर्थजी स्वयं अद्वैत वेदांति एवं भक्तिमार्गी संत थे किन्तु उन्होंने तत्कालीन समाज कि अवस्था देखकर ग्रंथोंमें राजनीती, प्रपंच,व्यवस्थापन शास्त्र, इत्यादि अनेको विषयोंका मार्गदर्शन किया है| समर्थ जी ने सरल प्रवाही शब्दोमें देवी देवताओंके १०० से अधिक के स्तोत्र लिखें हैं ।हैं। इन स्तोत्र एवं आरतियोंमें भक्ति,प्रेम एवं वीररस का आविष्करण है । ।आत्मारामहै।।आत्माराम, मानपंचक, पंचीकरण, चतुर्थमान,बाग़ प्रकरण, स्फूट अभंग इत्यादि समर्थ जी कि अन्य रचनाएं हैं ।यहहैं।यह सभी रचनाएं मराठी भाषा के 'ओवी 'नामक छंद में हैं ।हैं।
 
==कार्य==
समर्थ रामदास जी ने अपने शिष्योंके द्वारा समाज में एक चैतन्यदायी संगठन खड़ा किया ।किया। उन्होनें सतारा जिले में 'चाफल ' नाम के एक गाँव में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण किया ।किया। यह मंदिर निर्माण केवल भिक्षा के आधार पर किया ।कश्मीरकिया।कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने 1100 मठ तथा अखाड़े स्थापित कर स्वराज्यस्थापना के लिए जनता को तैयार करने का प्रयत्न किया। शक्ति एवं भक्ति के आदर्श श्री हनुमान जी कि मूर्तियां उन्होनें गाँव गाँव में स्थापित कि ।कि। आपने अपने सभी शिष्योंको विभिन्न प्रांतोंमें भेजकर भक्तिमार्ग तथा कर्मयोग कि सिख जनजन में प्रचारित करने कि आज्ञा कि ।युवाओंकोकि।युवाओंको बलसम्पन्न करने हेतु आपने सूर्यनमस्कार का प्रचार किया ।समर्थजीनेंकिया।समर्थजीनें ३५० वर्ष पहले संत वेणा स्वामी जैसी विधवा महिला को मठपति का दायित्व देकर कीर्तन का अधिकार दिया ।समर्थदिया।समर्थ रामदास जी के भक्तों एवं अनुयायियोंको ' रामदासी' कहते हैं ।हैं। समर्थजी द्वारा स्थापित सम्प्रदाय को 'समर्थ सम्प्रदाय ' अथवा 'रामदासी सम्प्रदाय कहते हैं ।हैं। 'जय जय रघुवीर समर्थ ' यह सम्प्रदाय का जयघोष है तथा 'श्रीराम जय राम जय जय राम ' यह' जपमन्त्र है।समर्थ जी कि विचारधारा तथा कार्य का प्रभाव लोकमान्य तिलक,स्वातंत्र्यवीर सावरकर, डा. केशव बलिराम हेडगेवार आदि महान नेताओं पर था ।था।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://mr.wikibooks.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A7 दासबोध]
* [http://www.dasbodh.com दासबोध,आत्माराम, मनोबोध व अन्य समर्थ वाङमय अनेक भाषाओंमे यहां उपलब्ध है ।है।]
* [http://www.prabhasakshi.com/ShowArticle.aspx?ArticleId=120223-105103-320010 छत्रपति शिवजी के गुरु थे समर्थ स्वामी रामदास]
* [http://www.dasbodh.com/ दासबोध.कॉम ( फ्री डाउनलोड )]