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२३. प्रत्ययग्रहणे चापञ्चम्याः।
== पाणिनि और आधुनिक भाषाशास्त्र ==
 
पाणिनि का कार्य 19वीं सदी में यूरोप में जाना जाने लगा, जिससे इसका आधुनिक भाषाशास्त्र पर खूब प्रभाव पड़ा। आरंभ में फ़्रेन्ज़ बोप् ने पाणिनि का अध्ययन किया। बाद में बहुत सी रचनाओं से योरपीय संस्कृत के विद्वान् जैसे फर्नांडीस डी सॉसर, लियोनार्ड ब्लूमफील्ड और रोमन जैकब्सन् आदि प्रभावित हुए। फ्रिट्स् स्टाल ने योरप में भाषा पर भारतीय विचारों के प्रभाव की विवेचना की।
=== डी सॉसर् ===
पाणिनि और बाद के भारतीय भाषाशास्त्री भर्तृहरि का फ़र्डीनांड डि सॉसर के कई बुनियादी विचारों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। फ़र्डीनांड डि सॉसर संस्कृत के प्राध्यापक थे, जो कि आधुनिक संरचनात्मक भाषाशास्त्र के जनक कहे जाते हैं। सॉसर ने स्वयं अपने कुछ विचारों पर भारतीय व्याकरण के प्रभाव का ज़िक्र किया है। अपने 1881 में प्रकाशित "डी लेम्पलोइ डु जेनिटिफ़् ऍब्सॉल्यु एन् सैन्स्क्रिट्" (संस्कृत में जेनेटिव् निरपेक्ष का प्रयोग) में, उन्होंने पाणिनि को विशेषरूप से ज़िक्र करके अपनी रचना को प्रभावित करने वाला बताया है।
 
=== लियोनार्ड् ब्लूम्फ़ील्ड् ===
 
अमेरिकी संरचनावाद के संस्थापक लियोनॉर्ड् ब्लूम्फ़ील्ड ने 1927 में एक शोधपत्र लिखा जिसका शीर्षक था "ऑन् सम् रूल्स् ऑफ़् पाणिनि" (यानी, पाणिनि के कुछ नियमों पर)।
 
=== आज के औपचारिक तन्त्रों के साथ तुलना ===
 
पाणिनि का व्याकरण संसार का पहला औपचारिक तन्त्र (फ़ॉर्मल् सिस्टम्) है। इसका विकास 19वीं सदी के गोट्लॉब फ्रेज के अन्वेषणों और उसके बाद के गणित के विकासों से बहुत पहले ही हो गया था। अपने व्याकरण का स्वरूप बनाने में पाणिनि ने "सहायक प्रतीकों" का प्रयोग किया, जिसमें नये शब्दांशों को सिन्टैक्टिक श्रेणियों का विभाजन रखने के लिए प्रयोग किया, ताकि व्याकरण की व्युत्पत्तियों को यथेष्ट नियन्त्रित किया जा सके। ठीक यही तकनीक जब एमिल पोस्ट् ने दोबारा "खोजी", तो यह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाओं की अभिकल्पना के लिए मानदण्ड बना।<ref>कैड्वेनी, जॉन (2007), "पोज़ीश्नल् वेल्यू एंड लिंग्विस्टिक् रिकर्शन्", जर्नल् ऑफ़् इन्डियन् फ़िलॉस्फ़ी 35: 587-520.</ref> आज संस्कृतविद् स्वीकार करते हैं कि पाणिनि का भाषीय औज़ार अनुप्रयुक्त पोस्ट-सिस्टम् के रूप में भली-भाँति वर्णित है। पर्याप्तमात्रा में प्रमाण मौज़ूद हैं कि इन प्राचीन लोगों को सहपाठ-संवेदी-व्याकरण (कन्टेक्स्ट-सेन्सिटिव ग्रामर) में महारत थी और कई जटिल समस्याओं को सुलझाने में व्यापक क्षमता थी।
==अन्य अ न्य रचनाएँ==
पाणिनि को दो साहित्यिक रचनाओं के लिए भी जाना जाता है, यद्यपि वे अब प्राप्य नहीं हैं।
 
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* [http://www.charchaa.org/2009/history/panini.html पाणिनि – सर्वश्रेष्ठ व्याकरण के रचनाकार] (हिन्दी ब्लाग, '''चर्चा''')
* [http://www.srijangatha.com/bloggatha13_2k10 पाणिनि : व्याकरण शास्त्र के श्रेष्ठ रचनाकार]
== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}
[[श्रेणी:संस्कृत]]