"अंतःस्राविकी": अवतरणों में अंतर

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यद्यपि इन ग्रंथियों की स्थिति और रचना का पता लग गया था, फिर भी इनकी क्रिया का ज्ञान बहुत पीछे हुआ। हिप्पोक्रेटीज और अरस्तू अंडग्रंथियों का पुरुषत्व के साथ संबंध समझते थे और अरस्तू ने डिंबग्रंथियों के छेदन के प्रभाव का उल्लेख भी किया है, किंतु पूर्वोक्त ग्रंथियों की क्रिया के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान उन्हें नहीं हो सका था। इस क्रिया का कुछ अनुमान कर सकने वाला प्रथम व्याक्ति टामस विली था। इसी प्रकार पीयूषिका ग्रंथि का स्राव सीधे रक्त में चले जाने की बात रिचार्ड लोवर ने सर्वप्रथम कही थी। अवटका के संबंध में इसी प्रकार का मत टामस रूयश ने प्रगट किया।
 
इस संबंध में जान हंटर (1723-93) के समय से नया युग आरंभ हुआ। अन्वेषण विधि का उसने रूप ही पलट दिया। ग्रंथि की रचना, उसकी क्रिया (फिज़ियोलॉजी), उस पर प्रयोगों से फल तथा उससे संबद्ध रोग लक्षणों का समन्वय करके विचार करने के पश्चात् परिणाम पर पहुँचने की विधि का उसने अनुसरण किया। श्री हंटर प्रथम अन्वेषणकर्ता थे जिन्होंने प्रयोग प्रारंभ किए और प्रजनन ग्रंथियों तथा यौन संबंधी लक्षणों-पुरुषों में छाती पर बाल उगना, दाढी मूँछ निकलना, स्वर की मंद्रता आदि-का घनिष्ठ संबंध प्रदर्शित किया। सन् 1827 में ऐस्ले कूपर ने प्रथम अवटुका छेदन किया। इसके पश्चात् अंतःस्राव के मत को विद्वानों ने स्वीकार कर लिया, और सन् 1855 में क्लोडबार्ड, टॉमस ऐडिसन और ब्राउन सीकर्ड के प्रयोगों से अंतःस्राव का सिद्धांत सर्वमान्य हो गया। ब्राउन सीकर्ड ने जो प्रयोग यकृत पर किए थे उनके आधार पर उसने यह मत प्रकाशित किया कि शरीर की अनेक ग्रंथियाँ, जैसे यकृत, प्लीहा, लसीका ग्रंथियाँ, पीयूषिका, थाइमस, अवटुका, अधिवृक्क, ये सब दो प्रकार से स्राव बनाती हैं,एक अत:स्राव, जो सीधा वहीं से शरीर में शोषित हो जाता है, और दूसरा बहिस्राव, जो ग्रंथि से एक नलिका द्वारा बाहर निकलता है तथा शरीर की आंतरिक दशाओं और क्रियाओं का नियंत्रण करता है। उसने यह भी समझ लिया कि ये ग्रंथियाँ तंत्रिकातंत्र (नर्वस सिस्टम) के अधीन हैं।एक वर्ष के पश्चात् उसने प्रथम अधिवृक्कछेदन (ऐड्रिनेलैक्टोमी) किया। इसी वर्ष टामस ऐडिसन अधिवृक्कसंपुट के रोगफ़ नामक लेख प्रकाशित किया जिससे अंतःस्राव के सिद्धांत भली-भाँति प्रमाणित हो गए।
 
यद्यपि [[हिप्पोक्रेटीज]] के समय से विद्वानों ने इन ग्रंथियों के विकारों से उत्पन्न लक्षणों का वर्णन किया है, तथापि ऐडिसन का रोग प्रथम अंतःस्रावी रोग था जिसकी खोज और विवेचना पूर्णतया की गई। अवटुका के रोगों का वर्णन चार्ल्स हिल्टन, फ़ाग, विलियम गल आदि ने किया। प्रयोगशालाओं में ग्रंथियों से उनका सत्व तथा हारमोन पृथक् किए गए और उनको मुँह से खिलाकर तथा इंजेक्शन द्वारा देकर उनका प्रभाव देखा गया। सन् 1901 में अधिवृक्क से ऐड्रिनैलिन पृथक् किया गया। कैंडल ने अवटुका से थाइरॉक्सीन और बैटिंग तथा बेस्ट ने पक्वाशय से इंस्यूलिन पृथक् किया। ऐलेन ने ईस्ट्रिन और कॉक ने टेस्टोस्टेरोन पृथक किए। इन रासायनिक प्रयोगों से इन वस्तुओं के रासायनिक संघटन का भी अध्ययन किया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि रसायनज्ञों ने इन वस्तुओं को प्रयोगशालाओं में तैयार कर लिया। इन कृत्रिम प्रकार से बनाए हुए पदार्थों को हारमोनॉएड नाम दिया गया है। आजकल इन्हीं का बहुत प्रयोग होता है।