"अज्ञेयवाद": अवतरणों में अंतर
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'''अज्ञेयवाद''' (एग्नॉस्टिसिज्म / Agnosticism) [[ज्ञानमीमांसा|ज्ञान मीमांसा]] का विषय है, यद्यपि उसका कई पद्धतियों में [[तत्वमीमांसा|तत्व दर्शन]] से भी संबंध जोड़ दिया गया है। इस सिद्धांत की मान्यता है कि जहाँ विश्व की कुछ वस्तुओं का निश्चयात्मक ज्ञान संभव है, वहाँ कुछ ऐसे तत्व या पदार्थ भी हैं जो अज्ञेय हैं, अर्थात् जिनका निश्चयात्मक ज्ञान संभव नहीं है। अज्ञेयवाद, [[संदेहवाद]] से भिन्न है; संदेहवाद या [[संशयवाद]] के अनुसार विश्व के किसी भी पदार्थ का निश्चयात्मक ज्ञान संभव नहीं है।
[[भारतीय दर्शन]] के संभवतः किसी भी संप्रदाय को अज्ञेयवादी नहीं कहा जा सकता। वस्तुतः भारत में कभी भी संदेहवाद एवं अज्ञेयवाद का व्यवस्थित प्रतिपादन नहीं हुआ। [[न्याय दर्शन|नैयायिक]] सर्वज्ञेयवादी हैं
एग्नास्टिसिज्म शब्द का सर्वप्रथम आविष्कार और प्रयोग सन् 1870 में [[टॉमस हेनरी हक्सले]] (1825-1895) द्वारा हुआ।
== परिचय ==
[[यूरोपीय दर्शन]] में जहाँ संशयवाद का जन्म [[यूनान]] में ही हो चुका था, वहाँ अज्ञेयवाद आधुनिक युग की विशेषता है। अज्ञेयवादियों में पहला नाम जर्मन दार्शनिक [[इमानुएल कांट|कांट]] (1724-1804) का है। कांट की मान्यता है कि जहाँ व्यवहार जगत् (फिनामिनल वर्ल्ड) बुद्धि या प्रज्ञा की धारणाओं (कैटेगीरीज ऑव अंडरस्टैंडिंग) द्वारा निर्धार्य, अतएव ज्ञेय नहीं है। तत्व दर्शन द्वारा अतींद्रिय पदार्थों का ज्ञान संभव नहीं है। फ्रेंच विचारक कास्ट (1798-1857) का भी, जिसने [[भाववाद]] (पाजिटिविज्म) का प्रवर्तन किया, यह मत है कि मानव ज्ञान का विषय केवल गोचर जगत् है, अतींद्रिय पदार्थ नहीं। सर [[विलियम हैमिल्टन]] (1788-1856) तथा उनके शिष्य हेनरी लांग्यविल मैंसेल (1820-1871) का मत है कि हम केवल सकारण अर्थात् कारणों द्वारा उत्पादित अथवा सीमित एवं सापेक्ष पदार्थों को ही जान सकते हैं, असीम, निरपेक्ष एवं कारणहीन (अन्कंडिशंड) तत्वों को नहीं। तात्पर्य यह कि हमारा ज्ञान सापेक्ष है, मानवीय अनुभव द्वारा सीमित है
== बाहरी कड़ियाँ ==
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