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सिंधु घाटी जितनी पुरानी कई सभ्यताओं के अवशेष सरस्वती नदी के किनारे पाए गए हैं। जिनमे नौरंगाबाद और मिट्टाथल भिवानी में, कुणाल, फतेहाबाद मे, अग्रोहा और राखीगढी़ हिसार में, रूखी रोहतक में और बनवाली सिरसा जिले में प्रमुख है। प्राचीन वैदिक सभ्यता भी सरस्वती नदी के तट के आस पास फली फूली। ऋग्वेद के मंत्रों की रचना भी यहीं हुई है।
 
कुछ प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार, कुरुक्षेत्र की सीमायें, मोटे तौर पर हरियाणा राज्य की सीमायें हैं। [[तैत्रीय अरण्यक]] ५.१.१ के अनुसार, कुरुक्षेत्र क्षेत्र, तुर्घना ( श्रुघना / सुघ सरहिन्द, पंजाब में ) के दक्षिण में, खांडव ( दिल्ली और मेवात क्षेत्र )के उत्तर में, मारू ( रेगिस्तान )के पूर्व में और पारिन के पश्चिम में है।<ref>[http://web.archive.org/web/20070628135849/http://www.omilosmeleton.gr/english/documents/VedicEvidenceforAMT.pdf] आर्यों के भारत प्रवासन संबंधी वैदिक प्रमाण पर विशाल अग्रवाल का पत्र</ref>
भारत के महाकाव्य [[महाभारत]]मे हरियाणा का उल्लेख ''बहुधान्यक''और ''बहुधन''के रूप में किया गया है। महाभारत में वर्णित हरियाणा के कुछ स्थान आज के आधुनिक शहरों जैसे, प्रिथुदक ([[पेहोवा]]), तिलप्रस्थ ([[तिल्पुट]]), पानप्रस्थ ([[पानीपत]]) और सोनप्रस्थ ([[सोनीपत]])मे विकसित हो गये हैं। [[गुड़गाँव]] का अर्थ गुरु के ग्राम यानि [[गुरु द्रोणाचार्य]] के गाँव से है। कौरवों और पांडवों के बीच हुआ महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध [[कुरुक्षेत्र]] नगर के निकट हुआ था। कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं पर दिया था। इसके बाद अठारह दिन तक हस्तिनापुर के सिंहासन का अधिकारी तय करने के लिये कुरुक्षेत्र के मैदानी इलाकों में पूरे भारत से आयी सेनाओं के मध्य भीषण संघर्ष हुआ। जनश्रुति के अनुसार [[महाराजा अग्रसेन्]] ने अग्रोहा जो आज के हिसार के निकट स्थित है, मे एक व्यापारियों के समृद्ध नगर की स्थापना की थी। किवंदती है कि जो भी व्यक्ति यहाँ बसना चाहता था उसे एक ईंट और रुपया शहर के सभी एक लाख नागरिकों द्वारा दिया जाता था, इससे उस व्यक्ति के पास घर बनाने के लिये पर्याप्त ईंटें और व्यापार शुरू करने के लिए पर्याप्त धन होता था।