"अक्षर": अवतरणों में अंतर
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'''अक्षर''' शब्द का अर्थ है - 'जो न घट सके, न नष्ट हो सके'। इसका प्रयोग पहले 'वाणी' या 'वाक्' के लिए एवं शब्दांश के लिए होता था। 'वर्ण' के लिए भी अक्षर का प्रयोग किया जाता रहा। यही कारण है कि [[लिपि]] संकेतों द्वारा व्यक्त वर्णों के लिए भी आज 'अक्षर' शब्द का प्रयोग सामान्य जन करते हैं। [[भाषाविज्ञान|भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन]] ने अक्षर को अंग्रेजी '[[सिलेबल]]' का अर्थ प्रदान कर दिया है, जिसमें स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं।
''एक ही आघात या बल में बोली जाने वाली ध्वनि या ध्वनि समुदाय की इकाई को अक्षर कहा जाता है।'' इकाई की पृथकता का आधार [[स्वर]] या स्वररत् (वोक्वॉयड) व्यंजन होता है। व्यंजन ध्वनि किसी उच्चारण में स्वर का पूर्व या पर अंग बनकर ही आती है। अस्तु, अक्षर में स्वर ही मेरुदंड है। अक्षर से स्वर को न तो पृथक् ही किया जा सकता है और न बिना स्वर या स्वररत् व्यंजन के अक्षर का निर्माण ही संभव है। उच्चारण में यदि व्यंजन मोती की तरह है तो स्वर धागे की तरह। यदि स्वर सशक्त सम्राट है तो व्यंजन अशक्त राजा। इसी आधार पर प्रायः अक्षर को स्वर का पर्याय मान लिया जाता है, किंतु ऐसा है नहीं, फिर भी अक्षर निर्माण में स्वर का अत्यधिक महत्व होता है। कतिपय भाषाओं में व्यंजन ध्वनियाँ भी अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी भाषा में न, र, ल् जैसी व्यंजन ध्वनियाँ स्वररत् भी उच्चरित होती हैं एवं स्वरध्वनि के समान अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी सिलेबल के लिए हिंदी में अक्षर शब्द का प्रयोग किया जाता है। [[रामविलास शर्मा|
शब्द के उच्चारण में जिस ध्वनि पर शिखरता या उच्चता होती है वही अक्षर या सिलेबल होता है, जैसे हाथ में आ ध्वनि पर। इस शब्द में एक अक्षर है। 'अकल्पित' शब्द में तीन अक्षर हैं - अ, कल्, पित् ; आजादी में तीन - आ जा दी; अर्थात् शब्द में जहाँ जहाँ स्वर के उच्चारण की पृथकता पाई जाए वहाँ-वहाँ अक्षर की पृथकता होती है।
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