"कन्नड़ भाषा": अवतरणों में अंतर

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# होस गन्नड–आधुनिक कन्नड ([[१९वीं शताब्दी]] के उत्तरार्ध से अब तक की अवस्था)।
 
चारों द्राविड भाषाओं की अपनी पृथक-पृथक लिपियाँ हैं। डॉ.एमडॉ॰एम.एच. कृष्ण के अनुसार इन चारों लिपियों का विकास प्राचीन अंशकालीन ब्राह्मी लिपि की दक्षिणी शाखा से हुआ है। बनावट की दृष्टि से कन्नड और [[तेलुगु]] में तथा [[तमिल]] और [[मलयालम]] में साम्य है। 13वीं शताब्दी के पूर्व लिखे गए तेलुगु शिलालेखों के आधार पर यह बताया जाता है कि प्राचीन काल में तेलुगु और कन्नड की लिपियाँ एक ही थी। वर्तमान कन्नड की लिपि बनावट की दृष्टि से देवनागरी लिपि से भिन्न दिखाई देती हैं, किंतु दोनों के ध्वनिसमूह में अधिक अंतर नहीं है। अंतर इतना ही है कि कन्नड में स्वरों के अतंर्गत "ए" और "ओ" के ह्रस्व रूप तथा व्यंजनों के अंतर्गत वत्स्य "ल" के साथ-साथ मूर्धन्य "ल" वर्ण भी पाए जाते हैं। प्राचीन कन्नड में "र" और "ळ" प्रत्येक के एक-एक मूर्धन्य रूप का प्रचलन था, किंतु आधुनिक कन्नड में इन दोनों वर्णो का प्रयोग लुप्त हो गया है। बाकी ध्वनिसमूह संस्कृत के समान है। कन्नड की वर्णमाला में कुल 47 वर्ण हैं। आजकल इनकी संख्या बावन तक बढ़ा दी गई है।
 
<center>{{कन्नड़ यूनिकोड सारणी}}</center>