"आनन्द": अवतरणों में अंतर
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'''आनंद''' उस व्यापक मानसिक स्थितियों की व्याख्या करता है जिसका अनुभव मनुष्य और अन्य जंतु सकारात्मक, मनोरंजक और तलाश योग्य मानसिक स्थिति के रूप में करते हैं. इसमें विशिष्ट मानसिक स्थिति जैसे सुख, [[मनोरंजन]], ख़ुशी, परमानंद
== दार्शनिक विचार ==
एपिकुरुस(Epicurus)और उनके अनुयायियों की परिभाषा के अनुसार, सर्वोत्तम आनंद पीड़ा<ref name="Epicurus1">[http://wiki.epicurus.info/Principal_Doctrines चालीस प्रधान सिद्धांत],[http://wiki.epicurus.info/Principal_Doctrines ] संख्या III.</ref> की अनुपस्थिति है, आनंद का तात्पर्य, "दैहिक पीड़ा से मुक्ति एवं आत्मा की अशांति से मुक्ति है.<ref name="Epicurus2">[http://wiki.epicurus.info/Letter_to_Menoeceus मेनोसियस को पत्र], [http://wiki.epicurus.info/Letter_to_Menoeceus ]धारा 131-2.</ref> सिसरो (cicero)(बल्कि उनके चरित्र तोर्कुंतुस) का मानना था कि सुख की अनुभूति प्रमुख कल्याण है (और, इसके विपरीत, पीड़ा प्रमुख बुराई).<ref name="Epicurus3">[http://www.epicurus.info/etexts/De_Finibus.html#IX, अबाउट द एंड्स ऑफ़ गुड्स एंड इवेल्स, बुक I], सेक्शन IX द्वारा, एपिक्युरस के दर्शनशास्त्र के समझ को टॉरक्वाटस ने प्रदर्शित किया.</ref> 12 वीं सदी में फख्र अल दीन अल रजी ने अपनी किताब ''रूह अल नफस वैल रूह'' में आनंद का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण विभिन्न प्रकार के आनंदों का विश्लेषण कामुक और बौद्धिक के रूप में किया और इनके एक दूसरे से तुलनात्मक सम्बन्ध की विवेचना की. उन्होंने दृढ़ता पूर्वक कहा की "सुखद अनुभूति का अगर सूक्ष्म परीक्षण किया जाए तो यह प्रकट होगा कि यह अनिवार्य रूप से सिर्फ पीड़ा का उन्मूलन मात्र है." तत्पश्चात वह निम्न उदाहरण देते हैं,:"व्यक्ति जितना अधिक भूखा होगा खाना खाने पर उसके आनंद की अनुभूति उतनी ही गहरी होगी." उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि "आनंद की संतुष्टि जीव के आवश्यकता और अभिलाषा के अनुपात में ही होती है." और " जब इन जरूरतों की पूर्ति या अभिलाषाओं की संतुष्टि होती है तो यह अनुभूति वास्तव में विकर्षण में तब्दील हो जाती है" क्योंकि" काम अथवा भोजन की अधिकता सुखदाई न हो कर पीड़ादायक बन जाती है.<ref>{{Cite journal |doi=10.1007/s10943-004-4302-z |first=Amber |last=Haque |year=2004 |title=Psychology from Islamic Perspective: Contributions of Early Muslim Scholars and Challenges to Contemporary Muslim Psychologists |journal=Journal of Religion and Health |volume=43 |issue=4 |pages=357–377 [370]}}</ref> उन्होंने कहा कि मानवीय आवश्यकताएं और इच्छाएं अनंत हैं
=== आनंद से जुड़े दर्शन ===
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== आनंद एक अद्वितीय मानव अनुभव ==
इस पर विवाद रहा है कि सुख की अनुभूति का एहसास दूसरे पशु भी करते हैं या यह सर्वथा मानव जाति का ही गुणधर्म है. दूसरी ओर [[जेरेमी बेन्थम]](जो आमतौर पर [[उपयोगितावाद]] के संस्थापक के रूप में माने जाते हैं)<ref name="Bentham">{{cite book | title = An Introduction to the Principles of Moral Legislation | year = 1996 | last = Bentham | first = Jeremy | authorlink = Jeremy Bentham |publisher = [[Oxford University Press]] | location = Oxford | isbn = 978-0-19-820516-6 | url = http://www.la.utexas.edu/research/poltheory/bentham/ipml/ipml.toc.html}}</ref> और बेथ डिक्सन<ref>नीति और पर्यावरण, खंड 6, संख्या 2, ऑटम 2001, पीपी. 22-30, इंडियाना यूनिवर्सिटी प्रेस, [http://muse.jhu.edu/login?uri=/journals/ethics_and_the_environment/v006/6.2dixon.html जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी प्रेस], इन्हें भी देखें: पशुओं में मनोभाव</ref> इस तर्क से सहमत हैं हालांकि वह बात सतर्कता से कहते हैं. जो लोग मानव अपवाद में विश्वास करतें हैं उनका यह मानना है की सगुणवाद में, सुख सहित, ''किसी भी'' मानवीय अनुभूति को पशुओं की विशेषता नहीं माना जा सकता है. दूसरे लोग पशु व्यवहार को मात्र उत्तेजना की प्रतिक्रिया के रूप में देखते हैं. व्यवहार का अध्यन करने वाले लोग भी, प्रमाण स्वरुप, पावलोव के कुत्तों (उनके द्वारा व्यवहार की दी गयी व्याख्या )को सबसे प्रसिद्ध उदहारण मानते हैं. हालांकि, यह तर्क किया जा सकता है की हमें यह नहीं पता कि पशु आनंद अनुभव कर सकते हैं या नहीं
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== आगे पढ़ें ==
* पॉल ब्लूम. ''''हाओ प्लेज़र वर्क्स: द न्यू साइंस ऑफ़ व्हाए वी लाइक व्हाट वी लाइक'' '' (2010) 280 पृष्ठ. हमारी इच्छाओं, आकर्षण
[[श्रेणी:प्रसन्नता]]
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