"आषाढ़ का एक दिन": अवतरणों में अंतर

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== कथानक ==
आषाढ़ का एक दिन एक [[त्रिखंड कथानक|त्रिखंडीय नाटक]] है। प्रथम खंड में युवक कालिदास अपने हिमालय में स्थित गाँव में शंतिपूर्वक जीवन गुज़ार रहा है और अपनी कला विकसित कर रहा है। वहां उसका एक युवती, मल्लिका, के साथ प्रेम-सम्बन्ध भी है। नाटक का पहला रुख़ बदलता है जब दूर [[उज्जयिनी]] के कुछ दरबारी कालिदास से मिलते हैं और उसे सम्राट [[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य]] के दरबार में चलने को कहते हैं। कालिदास असमंजस में पड़ जाता है: एक तरफ़ उसका सुन्दरता, शान्ति और प्रेम से भरा गाँव का जीवन है और दूसरी तरफ़ उज्जयिनी के राजदरबार से प्रश्रय पाकर महानता छू लेने का अवसर। मल्लिका तो यही चाहती है के जिस पुरुष को वह प्यार करती है उसे जीवन में सफलता मिले, और वह कालिदास को उज्जैनी जाने की राय देती है। भारी मन से कालिदास उज्जैनी चला जाता है। खेल के द्वितीय खंड में पता लगता है के कालिदास की उज्जयिनी में धाक जम चुकी है और हर ओर उसकी ख्याति फैली हुई है। उसका विवाह उज्जयिनी में ही एक आकर्षक और कुलीन स्त्री, प्रियंगुमंजरी, से हो चुका है। वहाँ गाँव में मल्लिका दुखी और तनहा रह गयी है। कालिदास और प्रियंगुमंजरी, अपने एक सेवकों के दल के साथ, कालिदास के पुराने गाँव आते हैं। कालिदास तो मल्लिका से मिलने नहीं जाता, लेकिन प्रियंगुमंजरी जाती है। वह मल्लिका से सहानुभूति जतलाती है और कहती है की वह उसे अपनी सखी बना लेगी और उसका विवक किसी राजसेवक से करवा देगी। मल्लिका ऐसी सहायता से साफ़ इनकार कर देती है। नाटक के तृतीय और अंतिम खंड में कालिदास गाँव में अकेले ही आ धमकता है। मल्लिका तक ख़बर पहुँचती है के कालिदास को कश्मीर का राज्यपाल बना दिया गया था लेकिन वह सब कुछ त्याग के आ गया है। निस्सहाय मल्लिका तब तक एक वैश्या बन चुकी है और उसकी एक छोटी से बेटी है। कालिदास मल्लिका से मिलने आता है लेकिन, मल्लिका के जीवन की इन सच्चाइयों को देख, पूरी तरह निराश होकर चला जाता है। नाटक इसी जगह समाप्ति पर पहुँचता है।<ref name="datta2006jkf"/><ref name="padhy2000jkf">{{Citation | title=The challenges of tribal development | author=Kishore C. Padhy, N. Patnaik | publisher=Sarup & Sons, 2000 | isbn=9788176251082 | url=http://books.google.co.in/books?id=ENvXnBOdQvcC | quote=''... goes to Ujjain and is elevated to the status of governor of Kashmir ... elaborate efforts of Priyangumanjari to reproduce for him the native environment ... she is no substitute for Mallika ... he can tell Mallika that the man she had before her was not the Kalidasa she had known ...''}}</ref>
 
नाटक के एक समीक्षक (क्रिटिक) ने कहा है के नाटक के हर खंड का अंत में "कालिदास मल्लिका को अकेला छोड़ जाता है: पहले जब वह अकेला उज्जयिनी चला जाता है; दूसरा जब वह गाँव आकर भी मल्लिका से जानबूझ कर नहीं मिलता; और तीसरा जब वह मल्लिका के घर से अचानक मुड़ के निकल जाता है।"<ref name="dharwadker2005jkf">{{Citation | title=Theatres of independence: drama, theory, and urban performance in India since 1947 | author=Aparna Bhargava Dharwadker | publisher=University of Iowa Press, 2005 | isbn=9780877459613 | url=http://books.google.co.in/books?id=mLQaz-12Eo8C | quote=''... each of the three acts in the play ends with an act of abandonment on the part of Kalidasa: when he leaves for Ujjayini alone; when he deliberately avoids meeting with Mallika during his subsequent visit to the village; when he leaves her home abruptly at the end ...''}}</ref> यह खेल दर्शाता है के कालिदास के महानता पाने के प्रयास की मल्लिका और कालिदास को कितनी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती है। जब कालिदास मल्लिका को छोड़कर उज्जयिनी में बस जाता है तो उसकी ख्याति और उसका रुतबा तो बढ़ता है लेकिन उसकी सृजनशक्ति चली जाती है। उसकी पत्नी, प्रियंगुमंजरी, इस प्रयास में जुटी रहती है के उज्जयिनी में भी कालिदास के इर्द-गिर्द उसके गाँव जैसा वातावरण बना रहे "लेकिन वह स्वयं मल्लिका कभी नहीं बन पाती।"<ref name="padhy2000jkf"/> नाटक के अंत में जब कालिदास की मल्लिका से अंतिम बार बात होती है तो वह क़ुबूल करता है के "तुम्हारे सामने जो आदमी खड़ा है यह वह कालिदास नहीं जिसे तुम जानती थी।"<ref name="padhy2000jkf"/>