"गंगानाथ झा": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
[[दरभंगा]] जिले के पं0 तीर्थनाथ झा मैथिल ब्राह्मणों की श्रोत्रिय शाखा के एक धर्मनिष्ठ विद्वान् ब्राह्मण थे जिनका विवाह दरभंगा नरेश के परिवार की एक सुसंस्कृत कन्या के साथ हुआ। इस दंपति के 15 सितंबर, 1872 को एक अत्यंत मेधावी गंगानाथ नामक पुत्र हुआ। युवा गंगानाथ ने मैथिली, हिंदी और संस्कृत में पारंगतता पाई और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. ए. किया। 18 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने संस्कृत में "कतिपयदिवसोद्गमप्ररोह" पद्यात्मक ग्रंथ लिखकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया और तदतंतर "पूर्वमीमांसा के प्रभाकरमत" का मौलिक अनुसंधान लिखकर प्रयाग विश्वविद्यालय की "डी. लिट" एवं बाद में अगाध पांडित्य से "महामहोपाध्याय" विद्यासागर, और "एल. एल. डी." उपाधियों से समादृत महामहोपाध्याय डॉ.डॉ॰ गंगानाथ झा नाम से प्रख्यात हुए। आर्य संस्कारों में परिवर्धित सादे जीवन और उच्च विचारों की प्रतिपूर्ति डॉ.डॉ॰ झा ने 1920 तक [[म्योर सेंट्रल कालेज]] प्रयाग का संस्कृताध्यक्ष रहकर शिष्यों की भकित तथा विद्वानों का अपूर्व सम्मान प्राप्त किया। उसी साल वे क्वींस ओरिएंटल संस्कृत कालेज बनारस के प्रथम भारतीय प्रिंसिपल नियुक्त हुए 1923 ई. में डॉ.डॉ॰ झा पुनरसंगठित [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] के प्रथम निर्वाचित कुलपति हुए और लगातार चुनावों के फलस्वरूप 1932 तक उपकुलपतित्व का दक्षतापूर्ण निर्वाह किया। इस अभ्यंतर में कुछ समय वे प्रातीय लेजिस्लेटिव काउंसिल के मनोनीत सदस्य भी रहे।
 
संस्कृत के दुरूह दर्शन ग्रंथों का अंग्रेजी में साधिकार भाषांतर कर के डॉ.डॉ॰ झा ने अंग्रेजी का भंडार भरने के अलावा भारतीय विचारों को पाश्चात्य देशों में सुलभ किया जिसके विषय में प्रोफेसर ऑटो स्ट्रास की प्रशस्ति है कि "हम सब के लिए जो प्राचीन भारत के दर्शनशास्त्रों को हृदयंगम करना चाहते हैं आप सच्चे उपाध्याय हैं। मीमांसा, न्याय और वेदांत पर आपकी कृतियों के बिना मैं अपनी रचनाएँ नहीं कर सकता था" (झा कमेमोरेशन वाल्यूम)। सर जार्ज ग्रियर्सन का यह कथन कि "डॉ.डॉ॰ झा की विद्वत्ता का आदर जितना मैं करता हूँ उससे अधिक दूसरा नहीं और न मुझ से अधिक अन्य कोई उनके लेखों के लिए जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है कृतज्ञ है।" (वही पुस्तक)।
 
== कृतियाँ ==