"इस्पात": अवतरणों में अंतर

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; उष्मा उपचार (हीट-ट्रीटमेन्ट) से इस्पात के गुणों में परिवर्तन
लोहा दो प्रकार के अति उपयोगी सममापीय (आइसोमेट्रिक) रवों के रूप में रहता है : (1) ऐल्फ़ा लोहा, जिसके ठोस घोल को "फ़ेराइट" कहते हैं, और (2) गामा लोहा, जिसका ठोस घोल "ऑसटेनाइट" है। शुद्ध लोहे का ऐल्फ़ा रूप लगभग 910डिग्री सें. से कम ताप पर रहता है; अधिक ताप पर गामा रूप रहता है। इन दोनों रूपों के लोहों में विविध मिश्रधातुकारी तत्वों को घुलनशीलता अति भिन्न है। व्यापारिक कार्बन-इस्पात, धातु-कार्मिक विचार से, लौह कार्बाइड का फेराइट में एक विक्षेपण (डिस्पर्शन) है, जिसमें लौह कार्बाइड का अनुपात कारबन की मात्रा पर निर्भर रहता है।
 
कार्बन इस्पात के मोटे टुकड़ों को ऐसी विधियों तथा दरों से एक सीमा तक ठंढा किया जा सकता है कि फेराइट में सीमेंटाइट के संभव वितरणों में से कोई भी वितरण उपलब्ध हो जाए। संरचना तथा उष्मा उपचार के विचार से कारबन इस्पात के अपेक्षाकृत ऐसे छोटे नमूने सरलता से चुने जा सकते हैं जिनमें साधारण ताप पर प्राय: महत्तम यांत्रिक गुण हों।
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'''सिलिनियम'''- यह तत्व गंधक के सदृश ही कार्य करता है।
 
'''टाइटेनियम''' - थोड़ी मात्रा में मिलाने से यह इस्पात की स्थिरता बढ़ाता है, और कहते हैं, इसके कारण दाने (ग्रेन) का परिमाण अधिक सूक्ष्म होता है।
 
'''टंग्स्टन''' - 20 प्रतिशत तक की मात्रा में टंग्स्टन उच्चवेग इस्पात का आवश्यक अवयव है; इसलिए कि यह इस्पात को उष्मा उपचार के बाद अत्यधिक कठोरता प्रदान करता है, जो ऊँचे ताप पर भी स्थिर रह जाती है। गर्म-ठप्पा-इस्पात तथा दूसरे गर्म कार्य के लिए उपयुक्त इस्पात में भी इसका उपयोग होता है। इसमें इसकी मात्रा 2 प्रतिशत से लगभग 10 प्रतिशत तक होती है।
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1900 ई. तक, साधारण उपयोग में, लोहा ही अकेले "नरम" लौहचुंबकीय वस्तु था। तत्पश्चात् अनेक मिश्रधातुओं का प्रवेश हुआ, जिनमें समुचित उष्मा उपचार से ऊँची प्रारंभिक चुबकशीलता (पमिएबिलिटी) तथा निम्न मंदायन (हिस्टेरीसिस) हानि उत्पन्न होती है! इन्हें पार-मिश्रधातु कहते हैं। निकल-लोहा की बहुत सी मिश्रधातुएँ, जिनमें दूसरी धातुओं की अल्प प्रतिशत में ही मिलावट रहती है, इस क्षेत्र में अति श्रेष्ठ ठहरी हैं। इन मिश्रधातुओं में 35-90% निकल रहता है तथा इनमें मिलाई जानेवाली प्रधान धातुएँ मालिब्डीनम, क्रोमियम तथा ताँबा है।
 
इंजीनियरी में ऐसे इस्पात तथा मिश्रधातुओं के अनेक उपयोग हैं, जो यांत्रिक तनाव सह सके या सहारा दे सकें, परंतु आसपास में चुंबकीय क्षेत्र की वृद्धि न करें। इनकी चुंबक-प्रवृत्ति (ससेप्टिाबलिटी) को लगभग शून्य तथा चुबंकशीलता को लगभग इकाई तक पहुँचना चाहिए। इस कार्य में प्रयुक्त होनेवाले पदार्थ निम्नलिखित हैं: (1) आस्टेनाइटमय मिश्रधातु ढलवाँ लोहा तथा इस्पात, (2) तापसमकारा मिश्रधातु जिनमें प्रधानत: निकल (30-36%), और लोहा (59-70%) रहता है तथा साथ में कभी कभी मैंगनीज़ या क्रोमियम (5%) होता है, तथा (3) निश्चुंबकीय इस्पात (कारबन 0.45%, मैंगनीज़ 8.5-9.5%, निकल 7.5-8.5%, क्रोमियम 3.0-3.5%)।
 
== अकलुष इस्पात (स्टेनलेस स्टील) ==