"गौरीदत्त": अवतरणों में अंतर
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: छिपावें बुरों को भले प्रीति से
इससे यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि गद्य-लेखन और पद्य-लेखन दोनों ही क्षेत्रों में पंडित गौरीदत्त का नाम सर्वथा अग्रणी और अनन्य है। यह प्रसन्नता की बात है कि हिंदी के कुछ विवेकी अध्येताओं का ध्यान गौरीदत्त जी की इस प्रतिभा की ओर गया है और यह भ्रम अब धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है कि हिन्दी का प्रथम उपन्यास ‘भाग्यवती' और 'परीक्षा गुरु‘ न होकर ‘देवरानी-जेठानी की कहानी‘ ही है। इस उपन्यास का प्रकाशन सर्वप्रथम सन् 1870 में [[मेरठ]] के ‘जियाई छापेखाने‘ में लीथो-पद्धति से हुआ था और इसकी प्रति अब भी ‘नेशनल लायब्रेरी कलकत्ता‘ में सुरक्षित है। इस उपन्यास का पुनर्प्रकाशन अब [[पटना विश्वविद्यालय]] के प्राध्यापक और ‘समीक्षा‘ नामक शोध-पत्रिका के सम्पादक
== इन्हें भी देखें ==
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