"उद्यान विज्ञान": अवतरणों में अंतर

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== कर्षण ==
कर्षण (कल्टिवेशन) शब्द का प्रयोग यहाँ पर दो भिन्न कर्मों के लिए किया गया है : एक तो उस छिछली और बार-बार की जानेवाली गोड़ाई या खुरपियाने के लिए जो घास पात मारने के उद्देश्य से की जाती है, और दूसरे उस गहरी जोताई के लिए जो प्रति वर्ष इसलिए की जाती है कि भूमि के नीचे घास पात तथा जड़ें आदि दब जाएँ। तरकारी और फूल की खेती में साधारणत: जोताई की बड़ी आवश्यकता रहती है। भारत की अधिकांश जगहों में फलों के उद्यान में भूमि पर घास उगना वांछनीय नहीं है और इसलिए थोड़ी बहुत गोड़ाई आवश्यक हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि गोड़ाई या खुरपियाने का प्रधान उद्देश्य अवांछित घास पात का निर्मूलन है, इसलिए यह तभी करना चाहिए जब वे छोटे हों और उन्होंने अपनी जड़ें गहरी न जमा ली हों। यह कर्षण छिछला होना चाहिए ताकि तरकारी, फूल या फलों की जड़ों को हानि न पहुँचे। शुष्क ऋतु में प्रत्येक सिंचाई के बाद एक बार हल्का कर्षण और निराना (वीडिंग) अच्छा है। इसके साथ ही फलों की उद्यानभूमि को, कम-से-कम गर्मी में और फिर एक बार बरसात में, पलटनेवाले हल से अवश्य जोत देना चाहिए। जोताई किस समय की जाए, यह भी कुछ महत्वपूर्ण है। यदि अधिक गीली भूमि पर जोताई की जाए तो अवश्य ही इससे भूमि को हानि पहुँच सकती है। हल्की (बालुकामय) मिट्टी की अपेक्षा भारी (चिकनी) मिट्टी में ऐसी हानि अधिक होती है। साधारणत: जोताई वही अच्छी होती है जो पर्याप्त सूखी भूमि पर की जाए, परंतु भूमि इतनी सूखी भी न रहे कि बड़े-बड़े चिप्पड़ उखड़ने लगें। फलों के उद्यान और तरकारी के खेतों में बिना जोते ही विशेष रासायनिक पदार्थों के छिड़काव से घास पात मार डालना भी उपयोगी सिद्ध हुआ है।
 
== अंतर्कृषि ==