"उपवास": अवतरणों में अंतर
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इन सब प्रकार के उपवासों का शरीर पर समान प्रभाव पड़ता है। एक बार भोजन ग्रहण करने पर कुछ घंटों तक जो शरीर को खाए हुए आहार से शक्ति मिलती रहती है, किंतु उसक पश्चात् शरीर में संचित आहार के अवयवों-प्रोटीन, [[कार्बोहाइड्रेट]] और स्नेह या वसा-का शरीर उपयोग करने लगता है। वसा और कार्बोहाइड्रेट परिश्रम करने की शक्ति उत्पन्न करते हैं। प्रोटीन का काम शरीर के टूटे फूटे भागों का पुनर्निर्माण करना है। किंतु जब उपवास लंबा या अधिक काल तक होता है तो शक्ति उत्पादन के लिए शरीर प्रोटीन का भी उपयोग करता है। इस प्रकार प्रोटीन ऊतकनिर्माण (टिशू फॉर्मेशन) और शक्ति-उत्पादन दोनों काम करता है।
शरीर में कार्बोहाइड्रेट दो रूपों में वर्तमान रहता है : ग्लूकोस, जो रक्त में प्रवाहित होता रहता है
शरीर में वसा विशेष मात्रा में त्वचा के नीचे तथा कलाओं में संचित रहती है। स्थूल शरीर में वसा की अधिक मात्रा रहती है। इसी कारण दुबले व्यक्ति की अपेक्षा स्थूल व्यक्ति अधिक दिनों तक भूखा रह सकता है। शरीर को दैनिक कर्मों और उष्मा के लिए कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन, तीनों पदार्थों की आवश्यकता होती है, जो उसको अपने आहार से प्राप्त होते हैं। आहार से उपलब्ध वसा यकृत में जाती है और वहाँ पर रासायनिक प्रतिक्रियाओं में वसाम्ल और ऐसिटो-ऐसीटिक-अम्ल में परिवर्तित होकर रक्त में प्रवाहित होती है तथा शरीर को शक्ति और उष्मा प्रदान रकती है। उपवास की अवस्था में शरीर की संचित वसा का यकृत द्वारा इसी प्रकार उपयोग किया जाता है। यह संचित वसा कुछ सप्ताहों तक कार्बोहाइड्रेट का भी स्थान ग्रहण कर सकती है। अंतर केवल यह है कि जब शरीर को आहार से कार्बोहाइड्रेट मिलता रहता है तब ऐसिटो-ऐसीटिक-अम्ल यकृत द्वारा उतनी ही मात्रा में संचालित होता है जितनी की आवश्यकता शरीर को होती है। कार्बोहाइड्रेट की अनुपस्थिति में इस अम्ल का उत्पादन विशेष तथा अधिक होता है और उसका कुछ अंश मूत्र में आने लगता है। इस अंश को कीटोन कहते हैं कीटोन का मूत्र में पाया जाना शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी का चिह्न है और उसका अर्थ यह होता है कि कार्बोहाइड्रेट का कार्य अब संचित वसा को करना पड़ रहा है। यह उपवास की प्रारंभावस्था में होता है। रुग्णावस्था में जब रोगी भोजन नहीं करता तब शरीर में कार्बोहाइड्रेट के चयापचय को जानने के लिए [[मूत्र]] में कीटोन की जांच करते रहना आवश्यक है।
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