"उल्का": अवतरणों में अंतर

छो पूर्णविराम (।) से पूर्व के खाली स्थान को हटाया।
छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया।
पंक्ति 11:
संरचना के आधार पर तीनों वर्गो में उपभेद किए जाते हैं। आश्मिक पिंडों में दो मुख्य उपभेद हैं जिनमें से एक को कौंड्राइट और दूसरे को अकौंड्राइट कहते हैं। पहले उपवर्ग के पिंड़ों का मुख्य लक्षण यह है कि उनमें कुछ विशिष्ट वृत्ताकार दाने, जिन्हें कौंड्रयूल कहते हैं, उपस्थित रहते हैं। जिन पिंड़ों में कौंड्रयूल उपस्थित नहीं रहते उन्हें अकौंड्राइट कहते हैं।
 
धात्विक उल्कापिंड़ों में भी दो मुख्य उपभेद हैं जिन्हें क्रमश: अष्टानीक (आक्टाहीड्राइट) और षष्ठानीक (हेक्साहीड्राइट) कहते हैं। ये नाम पिंडों की अंतररचना व्यक्त करते हैं, और जैसा इन नामों से व्यक्त होता है, पहले विभेद के पिंडों में धात्विक पदार्थ के बंध (प्लेट) अष्टानीक आकार में और दूसरे में षष्ठीनीक आकार में विन्यस्त होते हैं। इस प्रकार की रचना को विडामनस्टेटर कहते हैं एवं यह पिंड़ों के मार्जित पृष्ठ पर बड़ी सुगमता से पहचानी जा सकती है।
 
धात्वाश्मिक उल्कापिंडों में भी दो मुख्य उपवर्ग हैं जिन्हें क्रमानुसार पैलेसाइट और अर्धधात्विक (मीज़ोसिडराइट) कहते हैं। इनमें से पहले उपवर्ग के पिंडों का आश्मिक अंग मुख्यत: औलीवीन खनिज से बना होता है जिसके स्फट प्राय: वृत्ताकार होते हैं और जो लौह-निकल धातुओं के एक तंत्र में समावृत्त रहते हैं। अर्धधात्विक उल्कापिंडों में मुख्यत: पाइरौक्सीन और अल्प मात्रा में एनौर्थाइट फ़ेल्सपार विद्यमान होते हैं।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/उल्का" से प्राप्त