"पारिभाषिक शब्दावली": अवतरणों में अंतर

छो अल्प चिह्न सुधार
छो बॉट: लाघव चिह्न (॰) का उचित प्रयोग।
पंक्ति 17:
:"पारिभाषिक शब्द का अर्थ है जिसकी सीमाएं बांध दी गई हों। .... और जिनकी सीमा नहीं बांधी जाती, वे साधारण शब्द होते हैं।''
 
पारिभाषिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएं निश्चित करने का प्रयत्न किया है। डॉ.डॉ॰ रघुवीर सिंह के अनुसार -
 
"पारिभाषिक शब्द वह होता है जिसका प्रयाग किसी विशेष अर्थ में संकेत रुप से होता है।''
 
डॉ.डॉ॰ [[भोलानाथ तिवारी]] 'अनुवाद' के सम्पादकीय में इसे और स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
 
:"पारिभाषिक शब्द ऐसे शब्दों को कहते हैं जो सामान्य व्यवहार की भाषा के शब्द न होकर [[भौतिकी]], [[रसायन]], [[प्राणिविज्ञान]], [[दर्शन]], [[गणित]], [[इंजीनियरी]], [[विधि]], [[वाणिज्य]], [[अर्थशास्त्र]], [[मनोविज्ञान]], [[भूगोल]] आदि ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट शब्द होते हैं और जिनकी अर्थ सीमा सुनिश्चित और परिभाषित होती है। क्षेत्र विशेष में इन शब्दों का विशिष्ट अर्थ होता है।''
पंक्ति 63:
 
== पारिभाषिक शब्दावली का विकास ==
[[प्राचीन भारत]] में ही दर्शन, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि कुछ विषयों में प्रचुर भारतीय शब्दावली उपलब्ध थी. उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ही वैज्ञानिक उपलब्धियों से संबंधित शब्दावली हिन्दी भाषा में आने लगी थी. [[नागरीप्रचारिणी सभा|काशी नागरी प्रचारिणी सभा]], वाराणसी ने वैज्ञानिक शब्दावलियों के रूप में सर्वप्रथम पुस्तकाकार प्रकाशन किये। इस दिशा में [[डॉ.डॉ॰ सत्यप्रकाश]] ([[विज्ञान (हिन्दी पत्रिका)|विज्ञान परिषद]], इलाहाबाद) तथा [[रघु वीर|डॉ.डॉ॰ रघुवीर]] के कार्य विशेष उल्लेखनीय हैं।
 
[[रघु वीर|डॉ.डॉ॰ रघुवीर]] के कोश कार्य की एक ओर अत्यधिक प्रशंसा हुई, दूसरी ओर अत्यधिक आलोचना. वस्तुत: यह प्रशंसनीय कार्य था, जिसको अत्यधिक श्रम से वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत किया गया. संपूर्णत: संस्कृत पर आधारित होने के कारण इसकी व्यावहारिकता पर संदेह किया जाने लगा. उन्होंने सर्वप्रथम भाषा-निर्माण में यांत्रिकता तथा वैज्ञानिकता को स्थान दिया. [[उपसर्ग]] तथा [[प्रत्यय|प्रत्ययों]] के धातुओँ के योग से लाखों शब्द सहज ही बनाये जा सकते हैं:
 
:'''उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते। प्रहार-आहार-संहार-विहार-परिहार वत्।।'''
पंक्ति 89:
 
== हिन्दी का शब्द-सामर्थ्य ==
किस भाषा को विकसित-विकासशील माना जाए और किसको नहीं इसके लिए प्रो.प्रो॰ फर्गुसन ने बड़ी गहराई से विचार किया है। लिखित रूप में प्राप्त जिस भाषा में निम्न्ललिखित विशेषताएँ हों वह भाषा विकसित मानी जाएगी -
 
(क) आपसी पत्र-व्यवहार होता हो,