"प्रशान्त महासागर": अवतरणों में अंतर

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इस सागर की सतह, मुख्यतया पश्चिम में, कई बड़ी बड़ी लंबी खाइयों (deep) से भरी पड़ी है। कुछ महत्वपूर्ण खाइयों के नाम तथा गहराइयाँ इस प्रकार हैं ट्यूसीअरोरा (Tusearora) 32,644 फुट, रंपा (Rampa) 34, 626 फुट, नैरो (Nero) 32,107 फुट, एल्ड्रिच (Aldrich) 30,930 फुट आदि। उत्तरी प्रशांत महासागर में सबसे अधिक गहराई अल्यूशैन द्वीप के पास पाई जाती है, जो 25,194 फुट है।
 
प्रशांत महासागर का वह भाग, जो [[कर्क रेखा]] तथा [[मकर रेखा]] के मध्य में है, '''मध्य प्रशांत महासागर''' कहा जाता है। कर्क के उत्तरी क्षेत्र को उत्तरी प्रशांत महासागर तथा मकर के दक्षिण स्थित भाग को दक्षिणी प्रशांत महासागर के नाम से संबोधित किया जाता है। [[अंतरराष्ट्रीय जल सर्वेक्षण संगठन]] (International Hydrographic Organization) द्वारा इसे दो भागों में विभक्त करने के लिये भूमध्य रेखा का सहारा लिया गया है। 1500 प.पं॰ दे. पूर्वी प्रशांत के उन्हीं भागों के लिये प्रयुक्त होता है जो भूमध्य रेखा के दक्षिण में है। इसकी खोज स्पेनवासी बैबैओ (Babbao) ने की तथा इसने प्रशांत महासागर को पनामा नामक स्थान पर दक्षिणी सागर नाम दिया।
 
प्रशांत महासागर के उत्तर, पूर्व एवं पश्चिम से होता हुआ भूपटल का सबसे कमजोर भाग गुजरता है। इसके कारण यहाँ पर अधिकतर भूकंप एवं ज्वालामुखियों के उद्गार हुआ करते हैं। अभी भी यहाँ 300 ऐसे ज्वालामुखी पर्वत हैं, जिनमें से निरंतर उद्गार हुआ करते हैं। इस महासागर में छिटके द्वीपों का उद्भव प्रवालवलय, ज्वालामुखी अथवा भूकंपों के द्वारा हुआ है