"ब्रजबुलि": अवतरणों में अंतर

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"ब्रजबुलि" शब्द की व्युत्पत्ति तथा ब्रजबुलि भाषा की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में बहुत मतभेद है। यहाँ एक बात को स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि ब्रजबुलि, [[ब्रजभाषा]] नहीं है। [[व्याकरण]] संबंधी दोनों की अपनी-अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं, वैसे भाषातत्तव की दृष्टि से यह स्वीकार किया जाता है कि ब्रजबुलि का संबंध ब्रजभाषा से है। ब्रजबुलि के पदों में ब्रजभाषा के शब्दों का प्रयोग अधिक देखने को मिलता है।
 
ब्रजबुलि की उत्पत्ति '''[[अवहट्ठ]]''' से हुई। अवहट्ठ संबंधी थोड़ी सी जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है। कालक्रम से [[अपभ्रंश]] साहित्य की भाषा बन चुका था, इसे 'परिनिष्ठित अपभ्रंश' कह सकते हैं। यह परिनिष्ठित अपभ्रंश उत्तर भारत में [[राजस्थान]] से [[असम]] तक [[काव्य]]भाषा का रूप ले चुका था। लेकिन यहाँ यह भूल नहीं जाना चाहिए कि अपभ्रंश के विकास के साथ-साथ विभिन्न क्षेंत्रों की बोलियों का भी विकास हो रहा था और बाद में चलकर उन बोलियों में भी साहित्य की रचना होने लगी। इस प्रकार परवर्ती अपभ्रंश और विभिन्न प्रदेशों की विकसित बोलियों के बीच जो अपभ्रंश का रूप था और जिसका उपयोग साहित्य रचना के लिए किया गया उसे ही अवहट्ठ कहा गया है। डॉ.डॉ॰ [[सुनीतिकुमार चटर्जी]] ने बतलाया है कि [[शौरसेनी]] अपभ्रंश अर्थात् अवहट्ठ [[मध्यदेश]] के अलावा बंगाल आदि प्रदेशों में भी काव्यभाषा के रूप में अपना आधिपत्य जमाए हुए था। यहाँ एक बात की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है कि यद्यपि अवहट्ठ काव्यभाषा के रूप में ग्रहण किया गया था फिर भी यह स्वाभाविक था कि प्रांत विशेष की छाप उसपर लगती, इसीलिए काव्यभाषा होने पर भी विभिन्न अंचलों के शब्द, प्रकाशनभंगी आदि को हम उसमें प्रत्यक्ष करते हैं।
 
"ब्रजबुलि" शब्द की व्युत्पत्ति के संबंध में कुछ लोगों ने अनुमान लगाया है कि "ब्रजावली बोलि" का रूपांतर "ब्रजाली बुलि" में हुआ और "ब्रजाली बुलि" "ब्रजबुलि" बना। यह क्लिष्ट कल्पना है। वास्तव में अधिक तर्कसंगत यह लगता है कि इस भाषा में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है अतएव कृष्ण की लीलाभूमि "ब्रज" के साथ इसका संबंध जोड़ इस भाष को "ब्रजबोली" समझा गया होगा जो बँगला के उच्चारण की विशिष्टता के कारण "ब्रजबुलि" बन गया होगा।