"किला": अवतरणों में अंतर
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=== मध्यकाल ===
भारत के मध्यकालीन किलों के संबंध में बातें कुछ अधिक विस्तार से ज्ञात होती हैं। सामान्यत: किलों की दीवारें बड़ी चौड़ी तथा ऊँची बनाई जाती थीं जिनमें बीच में ऊँची बुर्जे तथा विशाल फाटक होते थे। इस काल के छोटी-छोटी पहाड़ियों पर बनाए गए किले बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। राजस्थान तथा दक्षिणी भारत के किले प्राय: पहाड़ियों पर ही बनाए गए हैं और कुछ किले मीलों की परिधि में बने हैं, जो किले पहाड़ियों पर बने हैं उनमें दोहरी-तीहरी चहारदीवारियाँ हैं। सबसे ऊँची चहारदीवारी के भीतर मुख्य दुर्ग होता था। प्राय: किलों की परिधि में नगर तथा मुख्य दुर्ग दोनों ही रहते थे। मुख्य दुर्ग के एक ओर ऊँची पहाड़ी या नदी का किनारा होता था। दुर्गनिर्माण कराते समय उन मार्गों की रक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था जिनसे होकर शत्रु किले में आ सकते थे या आक्रमण कर सकते थे। सामान्य रूप से किले के निर्माण के लिये किसी ऊँची पहाड़ी को चुना जाता था जिसकी ढालू चट्टानों पर पहुँचना कठिन होता था। जिस ओर से शत्रु के चढ़ आने की आशंका होती थी उस ओर की चट्टानों को काटकर ऐसा ढलवाँ मार्ग बना दिया जाता था जिससे एक ही दीवार द्वारा उसकी रक्षा हो जाती थी और दूसरी पहाड़ी बिल्कुल सीधी और खड़ी होती थी। कहीं-कहीं इन ढलवाँ मार्गों में चार से लेकर सात तक दृढ़ द्वार बने होते थे। किलों की बाहरी दीवार समतल भूमि पर बनाई जाती थीं, जिसको चौड़ी और गहरी दीवार की रक्षा खाइयों द्वारा सुरक्षित किया जाता था। यदि किला नदी के किनारे स्थित होता तो एक ओर से नदी उसके रक्षा करती थीं
किले की रक्षा मोर्चा बंदीवाली दीवारों से होती थी। इनमें प्राय: आकार में साढे तीन इंच चौड़े तीन फुट ऊँचे समानांतर झरोखे होते थे। [[चित्तौड़ का किला|चित्तौड़ के किले]] में ये झरोखे 3.5 इंच चौड़े तथा 3 फुट ऊँचे और तुगलकाबाद के किले में 6 इंच चौड़े तथा 6 फुट ऊँचे हैं। दिल्ली के पुराने किले में झरोखों की तीन और तुगलकाबाद में चार पंक्तियाँ हैं। प्राय: किलों में छाती तक ऊँचे परकोटे ईटं द्वारा पुन: निर्मित हुए हैं जिनमें से बहुत से ऊपर की ओर वर्गाकार है जिन्हें संभवत: गोली बरसाने के उद्देश्य से बनाया गया होगा। बीजापुर, फतहपुर सीकरी तथा आगरा जैसे कुछ किलों में झरोखों के बाहरी भाग में गोली चलाने के लिए सैनिकों रक्षा के हेतु पत्थर की छतरियाँ बनी हुई हैं।
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