"भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो विराम चिह्न की स्थिति सुधारी। |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: लाघव चिह्न (॰) का उचित प्रयोग। |
||
पंक्ति 6:
आजाद दस्ता- यह भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद क्रान्तिकारियों द्वारा प्रथम गुप्त गतिविधियाँ थीं। जयप्रकाश नारायण ने इसकी स्थापना नेपाल की तराई के जंगलों में रहकर की थी। इसके सदस्यों को छापामार युद्ध एवं विदेशी शासन को अस्त-व्यस्त एवं पंगु करने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा।
बिहार प्रान्तीय आजाद दस्ते का नेतृत्व सूरज नारायण सिंह के अधीन था। परन्तु भारत सरकार के दबाव में मई, १९४३ में जय प्रकाश नारायण,
सियाराम-ब्रह्मचारी दल- बिहार में गुप्त क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेतृत्व सियाराम-ब्रह्मचारी दल ने स्थापित किया था। इसके क्रान्तिकारी दल के कार्यक्रम की चार बातें मुख्य थीं- धन संचय, शस्त्र संचय, शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण तथा सरकार का प्रतिरोध करने के लिए जनसंगठन बनाना। सियाराम-ब्रह्मचारी दल का प्रभाव भागलपुर, मुंगेर, किशनगंज, बलिया, सुल्तानगंज, पूर्णिया आदि जिलों में था। सियाराम सिंह सुल्तानगंज के तिलकपुर गांव के निवासी थी और ब्रह्मचारी थाना बिहपुर के नन्ह्कार गांव के रहने वाले, इन्ही दोनों के नाम पर क्रांतिकारी दस्ते का नामकरण हुआ | क्रान्तिकारी आन्दोलन में हिंसा और पुलिस दमन के अनगिनत उदाहरण मिलते हैं।
पंक्ति 37:
७. राय गोविन्द सिंह- इस महान सपूत का जन्म पटना जिले के दशरथ ग्राम में हुआ। वह पुनपुन हाईस्कूल का ११वीं का छात्र था।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इस स्थान पर शहीद स्मारक का निर्माण हुआ। इसका शिलान्यास स्वतन्त्रता दिवस को बिहार के प्रथम राज्यपाल जयराम दौलत राय के हाथों हुआ। औपचारिक अनावरण देश के प्रथम राष्ट्रपति
बिहार में भारत छोड़ो आन्दोलन को सरकार द्वारा बलपूर्वक दबाने का प्रयास किया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि क्रान्तिकारियों को गुप्त रूप से आन्दोलन चलाने पर बाध्य होना पड़ा।
पंक्ति 47:
दिसम्बर, १९४१ में जापानी आक्रमण से अंग्रेज भयभीत हो गये थे। मार्च, १९४२ में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विन्सटन चर्चिल ने ब्रिटिश संसद में घोषणा की कि युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान किया जायेगा। २२ मार्च, १९४२ को स्टेफोर्ड किप्स ने इस व्यवस्था में लाया। फलतः उनके प्रस्ताव राष्ट्रवादियों के लिए असन्तोषजनक सिद्ध हुए। ३० जनवरी, १९४२ से १५ फरवरी, १९४२ तक पटना में रहकर मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने सार्वजनिक सभा को सम्बोधित किया।
१४ जुलाई, १९४२ को वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का आयोजन किया गया। इसी समय सुप्रसिद्ध भारत छोड़ो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और उसे अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति को मुम्बई में होने वाली बैठक में प्रस्तुत करने का निर्णय हुआ। ५ अगस्त, १९४२ को मुम्बई में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और गाँधी जी ने करो या मरो का नारा दिया साथ ही कहा हम देश को चितरंजन दास की बेड़ियों में बँधे हुए देखने को जिन्दा नहीं रहेंगे। ८ अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के तुरन्त बाद कांग्रेस के अधिकतर नेता गिरफ्तार कर लिये गये।
(तत्कालीन समय में प्रान्त के प्रधान को प्रधानमन्त्री कहा जाता था।)
पंक्ति 55:
ब्रिटिश संसद द्वारा १९३५ ई. में भारत के शासन के लिए एक शासन विधान को पारित किया गया। १९३५ ई. से १९४७ ई. तक इसी आधार पर भारतीय शासन होता रहा। इस विधान में एक संघीय शासन की व्यवस्था थी। कांग्रेस ने इसे अपेक्षाओं से कम माना लेकिन चुनाव में भाग लिया। १९३५-३६ ई. के चुनाव तैयार करने लगा। जवाहरलाल नेहरू एवं गोविन्द वल्लभ पन्त ने बिहार का दौरा कर कांग्रेसियों का जोश बढ़ाया।
कांग्रेस ने अनेक रचनात्मक कार्य उद्योग संघ, चर्खा संघ आदि चलाये। रात्रि समय में पाठशाला, ग्राम पुसतकालय खोले गये। आटा चक्की, दुकान चलाना एवं खजूर से गुड़ बनाना आदि कार्यों का प्रशिक्षण दिया गया। बिहार में कांग्रेसी आश्रम खोलने का शीलभद्र याज्ञी का विशेष योगदान रहा। १९३५ ई. का वर्ष कांग्रेस का स्वर्ण जयन्ती वर्ष था जो
२१ जून को वायसराय लिनलिथगो के वक्तव्य ने संशयों को दूर करने में सफलता पाई अन्त में युनुस को सरकार का निमन्त्रण न देकर श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व मन्त्रिमण्डल का गठन किया गया,अनुग्रह नारायण सिंह उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री बने। रामदयालु अध्यक्ष तथा
विदेशी वस्त्र बहिष्कार- ३ जनवरी, १९२९ को कलकत्ता में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने का निर्णय किया गया। इसमें अपने स्वदेशी वस्त्र खादी वस्त्र को बढ़ावा देने के लिए माँग की गई। सार्वजनिक सभाओं एवं मैजिक लालटेन की सहायता से कार्यकर्ता के सहारे गाँव में पहुँचे।
पंक्ति 139:
बिहार में क्रान्तिकारी आन्दोलन
बंग भंग विरोधी आन्दोलन से बिहार तथा बंगाल में क्रान्तिकारी आन्दोलन प्रारम्भ हो गया। बिहार के
१९०८ ई. में ही नवाब सरफराज हुसैन खाँ की अध्यक्षता में बिहार कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ। इसमें सच्चिदानन्द सिंह, मजरूलहक हसन, इमाम दीपनारायण सिंह आदि शामिल थे। कांग्रेस कमेटी के गठन के बाद इसके अध्यक्ष इमाम हुसैन को बनाया गया।
पंक्ति 147:
१९०७ ई. में ही फखरुद्दीन कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त होने वाले प्रथम बिहारी बने तथा स्थायी पारदर्शी के रूप में इमाम हुसैन को नियुक्त किया गया। १९१० ई. में मार्लेमिण्टो सुधार के अन्तर्गत प्रथम चुनाव आयोजन में सच्चिदानन्द सिंह ने चार महाराजाओं को हराकर बंगाल विधान परिषद् की ओर से केन्द्रीय विधान परिषद् में विधि सदस्य के रूप में नियुक्त हुए। १९११ ई. में दिल्ली दरबार में जार्ज पंचम के आगमन में केन्द्रीय परिषद् के अधिवेशन के दौरान सच्चिदानन्द सिंह, अली इमाम एवं मोहम्मद अली ने पृथक बिहार की माँग की। फलतः इन बिहारी महान सपूतों द्वारा १२ दिसम्बर, १९११ को दिल्ली के शाही दरबार में बिहार और उड़ीसा को मिलाकर एक नया प्रान्त बनाने की घोषणा हुई। इस घोषणा के अनुसार १ अप्रैल, १९१२ को बिहार एवं उड़ीसा नये प्रान्त के रूप में इनकी विधिवत् स्थापना की गई। बिहार के स्वतन्त्र अस्तित्व का मुहर लगने के तत्काल बाद पटना में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का २७वाँ वार्षिक सम्मेलन हुआ। मुगलकालीन समय में बिहार एक अलग सूबा था। मुगल सत्ता समाप्ति के समय बंगाल के नवाबों के अधीन बिहार चला गया। फलतः बिहार की अलग राज्य की माँग सर्वप्रथम मुस्लिम और कायस्थ ने की थी। जब लार्ड कर्जन ने बंगाल को १९०५ ई. में पूर्वी भाग एवं पश्चिमी भाग में बाँध दिया था तब बिहार के लोगों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया एवं सच्चिदानन्द सिंह एवं महेश नारायण ने अखबारों में वैकल्पिक विभाजन की रूपरेखा देते हुए लेख लिखे थे जो पार्टीशन ऑफ बंगाल और लेपरेशन ऑफ बिहार १९०६ ई. में प्रकाशित हुए थे।
इस समय कलकत्ता में राजेन्द्र प्रसाद अध्ययनरत थे वे वहाँ बिहारी क्लब के मन्त्री थे।
बिहार प्रादेशिक सम्मेलन की स्थापना १२-१३ अप्रैल, १९०६ में पटना में हुई जिसकी अध्यक्षता अली इमाम ने की थी। इसमें बिहार को अलग प्रान्त की माँग के प्रस्ताव को पारित किया गया।
|