"अश्वत्थामा": अवतरणों में अंतर
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{{wikify}}महाभारत युध्द से पुर्व गुरु द्रोणाचार्य जी अनेक स्थानो मे भ्रमण करते हुए हिमालय (ऋषिकेश)प्हुचे।वहा तमसा नदी के किनारे एक दिव्य गुफा मे तपेश्वर नामक स्वय्मभू शिवलिग हे।यहा गुरु द्रोणाचार्य जी और उनकी पत्नि माता कृपि ने शिवजी की तपस्या की। इनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने इन्हे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।कुछ समय बाद माता कृपि ने एक सुन्दर तेजश्वी बाल़क को जन्म दिया। जन्म ग्रहण करते ही इनके कण्ठ से हिनहिनाने की सी ध्वनि हुई जिससे इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी |जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी।
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