"माधवराव सप्रे": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
छो Bot: अंगराग परिवर्तन |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: लाघव चिह्न (॰) का उचित प्रयोग। |
||
पंक्ति 4:
सप्रे जी की कहानी "एक टोकरी मिट्टी" (जिसे बहुधा लोग “टोकनी भर मिट्टी” भी कहते हैं) को हिंदी की पहली कहानी होने का श्रेय प्राप्त है। सप्रे जी ने लेखन के साथ-साथ विख्यात संत [[समर्थ रामदास]] के मराठी ''दासबोध'' व [[महाभारत]] की मीमांसा, दत्त भार्गव, श्री राम चरित्र, एकनाथ चरित्र और आत्म विद्या जैसे मराठी ग्रंथों, पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी बखूबी किया। [[१९२४]] में [[हिंदी साहित्य सम्मेलन]] के [[देहरादून]] अधिवेशन में सभापति रहे सप्रे जी ने [[१९२१]] में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की। यह दोनो विद्यालय आज भी चल रहे हैं।
माधवराव सप्रे के जीवन संघर्ष, उनकी साहित्य साधना, हिन्दी पत्रकारिता के विकास में उनके योगदान, उनकी राष्ट्रवादी चेतना, समाजसेवा और राजनीतिक सक्रियता को याद करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी ने ११ सितम्बर १९२६ के ''कर्मवीर'' में लिखा था − "पिछले पच्चीस वर्षों तक
== संदर्भ ==
<references/>
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.sapresangrahalaya.com/files/P.MadhvRavSapre.htm कर्मयोगी
* [http://www.sapresangrahalaya.com/index.htm सप्रे संग्रहालय, भोपाल] (जालघर)
* [http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/2010/04/blog-post_23.html लोकजागरण के अप्रतिम आस्था थे सप्रे जी]
|