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जब यूरोपवासियों, विशेषत: अंगरेजों का भारत के साथ निकट संबंध स्थापित हुआ तब नवागंतुक अंगरेजों को इस देश की भाषाएँ जानने की विशेष आवश्यकता प्रतीत हुई। और तब उन्होंने अपनी सुविधा के लिये अपनी देशभाषा के कोशों के अनुकरण पर भारतीय भाषाओं के कोश बनाए। इस प्रकार इस देश में आधुनिक ढंग के और अकारादि क्रम से बननेवाले शब्दकोशों की रचना का सूत्रपात हुआ। भारतीय भाषाओं में कदाचित् सबसे पहले हिंदी, जिसे उस समय अंग्रेज हिंदुस्तानी कहा करते थे, के दो कोश जे. फर्ग्रुसन ने तैयार किए जो 1773 ई. में लंदन में छपे। इसी प्रकार हेनरी हेरिस के प्रयास के परिणामस्वरूप इसी ढंग का एक अन्य कोश 1790 ई. में मदरास में छपा। 1808 ई. में जोजेफ टेलर और विलियम हंटर के संयुक्त प्रयास से एक हिंदुस्तानी-अंगरेजी कोश कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। तदुपरांत 1810 में एडिनबरा से जे. बी. गिलक्राइस्ट का और 1819 में लंदन से जे. शेक्सपियर का अंगरेजी-हिंदुस्तानी और हिंदुस्तानी-अँगरेजी कोश निकले। ये सभी कोश रोमन अक्षरों में मुद्रित किए गए थे।
 
हिंदी भाषा और नागरी अक्षरों में पहला कोश पादरी एम. टी. एडम ने तैयार किया जो 1829 ई. में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। उसके बाद ऐसे अनेक कोश प्रस्तुत हुए जिनमें हिंदी शब्दों के अर्थ अंगरेजी में अथवा अँगरेजी शब्दों के अर्थ हिंदी में होते थे। ऐसे कोश प्रस्तुत करने वालों में एम. डब्ल्यू. फैलन, जे. टी. प्लाट्स, और जे. डी. वेट के नाम विशेष उल्लेखनीय है। मुंशी राधेलाल पहले भारतीय थे जिन्होंने 1873 ई. में कोश प्रस्तुत किया। 1880 ई. में सैयद जामिल अली जलाल का गुलशने फैज नामक कोश प्रकाशित हुआ जो फारसी लिपि में था पर उसमें अधिकांश शब्द हिंदी के थे। 1892 ई. में बांकीपुर (पटना) से बाबा बैजूदास का विवेक कोश निकला। तदुपरांत हिंदी के छोटे छोटे अनेक कोश निकले।
 
==== [[हिन्दी शब्दसागर]] ====
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