"क्रेन": अवतरणों में अंतर

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भाप से चलनेवाली क्रेनों के वाष्पित्र को भार उठाते समय ही भाप देना पड़ता है। इसलिये वाष्पित्र पर कभी कभी पूरा भार पड़ेगा। जब भार को काँटे में बाँधा जा रहा हो, अथवा क्रेन भार को डालकर वापस आ रहा हो, तब वाष्पित्र से पूरी भाप नहीं ली जाती और उसी समय में वाष्पित्र अपना निपीड बना लेता है। मान लें, क्रेन में 40 अश्व शक्ति का इंजन लगा हुआ है। इस इंजन के लिये क्रेन पर जो वाष्पित्र लगाया जाए उसका तापक्षेत्र उस वाष्पित्र से, जो इसका बराबर भाप देने के लिये आवश्यक है, 1/4 भी हो तो काम ठीक चल जायेगा। इसलिये क्रेनों में छोटे वाष्पित्रों से बड़ा अच्छा काम लिया जाता है। इसी कारण क्रेन का आकार भी कम रहता है और खर्च भी कम होता है। अत: हम कह सकते हे कि क्रेनों की मोटरों के लिये यदि भार-अनुपात 1/3 से 1/6 तक रखा जाय तो क्रेन के काम पर कोई दुष्प्रभाव न पड़ेगा। बिजली के क्रेनों के लिये श्रेणीवलित (series wound) मोटरें होती हैं जिनमें बराबर विद्युद्धारा जाती है और चलने के समय इनका बहुत अधिक ऐंठन होता है। भार उठाते समय अधिक बल की आवश्यकता होती है, किंतु एक बार भार उठा लेने पर इतने अधिक बल की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसलिए इस मोटर के अधिक ऐंठन के कारण भार को उठाते समय कोई कठिनाई नहीं होती। इस मोटर का एक गुण यह भी है कि मंद गति पर इससे बड़े भार भी उठाए जा सकते है और हलके भारों को अधिक गति से।
 
क्रेन का सर्वप्रथम कार्य भार को ऊपर की ओर उठाना है। किसी काँटे में लटकाकर भार उठा लिया जाता है। इस कार्य के लिये एक तो लंबी धरणी की आवश्यकता होगी, जिससे क्रेन के काम करने का क्षेत्र बड़ा हो, और दूसरे इस धरणी को चलाने के लिये मशीनें आवश्यक होगी। चित्र 3. में दिखलाई गई क्रेन में (2) इसकी धरणी है, जिसपर इस क्रेन की क्षैतिज दिशा का काम निर्भर है। इस धरणी के ऊपरी भाग पर एक घिरनी लगी है जिसपर से क्रेन की मशीनों से आई जंजीर भार उठानेवाले काँटे तक चली जाती है। यह जंजीर पर्याप्त लंबी होती है और क्रेन की मशीन पर लगे हुए एक बड़े बेलन पर लिपटी रहती है। किसी भार या यंत्र को उठाते समय मशीन को उलटा घुमाने से जंजीर खुलकर नीचे चली जाती है और भार को उठाते समय बेलन सीधा घूमता है और जंजीर को अपने ऊपर लपेटता रहता है। जब भार उठ जाता है तो क्रेन के खंभे (1) को घुमाकर भार को यथास्थान ले जाते हैं।
 
स्थिर क्रेनों में सबसे सरल क्रेन चित्र 4 में दिखलाया गया हैं। तीन टाँगों के डेरिक के बीच घिरनियाँ लगाकर रस्सों के द्वारा भार को ऊपर उठा लिया जाता है। इस प्रकार क्रेन से भार को क्षैतिज दिशा में नहीं ले जाया जा सकता। यह केवल मशीनों के अंगों को एक दूसरे के ऊपर रखने के ही काम आता है। चित्र 5. के क्रेन में एक खड़े खंभे पर एक क्षैतिज धरणी है, जो चारों ओर घूम सकती है। इस प्रकार के क्रेन से भार को उठाकर कहीं भी रखा जा सकता है। यदि इस क्रेन के आधार के नीचे पहिए लगा दिए जायँ तो इसको ठेलकर या चलाकर या स्थान से दूसरे स्थान पर भी ले जाया जा सकता है। धरणी के दाहिनी ओर काँटा है जो आगे पीछे और ऊपर नीचे किया जा सकता है। इस धरणी के बाईं ओर घिरनियाँ और क्रेन को चलानेवाली मशीनें हैं। धरणी के ये दोनों भाग एक दूसरे का संतुलन बनाए रखते हैं। धरणी को घुमानेवाले दंत खंभे के ऊपर या नीचे की ओर किसी भी स्थान पर लगाए जा सकते हैं।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/क्रेन" से प्राप्त