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[[महाभारत]] के अनुसार '''अहिछत्र''' ( 'सर्पों का छत्र' ) [[पाञ्चाल|उत्तर पांचाल]] की राजधानी था। सबसे प्राचीन लेख में '''अधिच्छत्र''' मिलता है।
 
[[महाभारत]] के अनुसार उत्तर पाँचाल की राजधानी '''अहिच्छत्र''' ( = "सर्पों का छत्र" ; सबसे प्राचीन लेख में 'अधिच्छत्र' ) को कुरुओं ने वहाँ के राज से छीनकर द्रोण को दे दिया था। कहा जाता है, द्रोण ने द्रुपद को अपने शिष्यों की सहायता से हराकर प्रतिशेध लिया था और उसका आधा राज्य बाँट लिया था। अहिच्छत्र के पाँचाल जनपद का इतिहास ई.पू. छठी शताब्दी से मिलता है। तब यह १६ जनपदों में से एक था। मुद्राओं और लेखों से ज्ञात होता है कि ई.पू. पहली शताब्दी में मित्रवंश के राजाओं ने अहिच्छत्र में राज किया। कुछ विद्वानों ने इस वंश को शुंग राजाओं का वंश सिद्ध करने का प्रयास किया। पर वास्तव में ये प्रांतीय शासक थे, जैसा इस वंश की लंबी, मुद्रांकिन नामों के आधार पर बनी, तालिका से प्रतीत होता है। इसके बाद का इतिहास नहीं मिलता। गुप्तसाम्राज्य[[गुप्त साम्राज्य]] में नि:संदेह यह एक भुक्ति था। चीनी चात्री युवान च्वांग ने यहाँ पर १० बौद्ध विहार और नौ मंदिर देखे थे। ११वीं शताब्दी में इसका राजनीतिक महत्व जाता रहा।
== परिचय ==
[[उत्तर प्रदेश]] के [[बरेली]] जिले के आँवला स्टेशन से कोई १० किमी उत्तर प्राचीन अहिच्छत्र के अवशेष आज भी वर्तमान हैं। इनमें कोई तीन मील के त्रिकाणाकार घेरे में ईटों की किलेबंदी के भीतर बहुत से ऊँचे-ऊँचे टीले हैं। सबसे ऊँचा टीला ७५ फुट का है। कर्निघम ने सबसे पहले वहाँ कुछ खुदाई कराई और बाद में फ्यूरर ने उसका अनुसरण किया। १९४०-४४ में यहाँ चुने हुए स्थानों की खुदाई हुई जिसमें भूरी मिट्टी के ठीकरे मिले। महाभारतकाल का तो कोई प्रमाण यहाँ नहीं मिला, पर शुंग, कुषाण और गुप्तकाल की अनेक मुद्राएँ, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियाँ मिलीं। बाद के काल के रहने के स्थान, सड़कें और मंदिरों के अवशेष भी मिले हैं।
 
[[उत्तर प्रदेश]] के [[बरेली]] जिले के आँवला स्टेशन से कोई १०सात किमीमील उत्तर प्राचीन अहिच्छत्र के अवशेष आज भी वर्तमान हैं। इनमें कोई तीन मील के त्रिकाणाकार घेरे में ईटोंईंटों की किलेबंदी के भीतर बहुत से ऊँचे-ऊँचे टीले हैं। सबसे ऊँचा टीला ७५ फुट का है। कर्निघम ने सबसे पहले वहाँ कुछ खुदाई कराई और बाद में फ्यूरर ने उसका अनुसरण किया। १९४०-४४ में यहाँ चुने हुए स्थानों की खुदाई हुई जिसमें भूरी मिट्टी के ठीकरे मिले। महाभारतकाल का तो कोई प्रमाण यहाँ नहीं मिला, पर शुंग, कुषाण और गुप्तकाल की अनेक मुद्राएँ, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियाँ मिलीं। बाद के काल के रहने के स्थान, सड़कें और मंदिरों के अवशेष भी मिले हैं।
महाभारत के अनुसार उत्तर पाँचाल की राजधानी अहिच्छत्र को कुरुओं ने वहाँ के राज से छीनकर द्रोण को दे दिया था। कहा जाता है, द्रोण ने द्रुपद को अपने शिष्यों की सहायता से हराकर प्रतिशेध लिया था और उसका आधा राज्य बाँट लिया था। अहिच्छत्र के पाँचाल जनपद का इतिहास ई.पू. छठी शताब्दी से मिलता है। तब यह १६ जनपदों में से एक था। मुद्राओं और लेखों से ज्ञात होता है कि ई.पू. पहली शताब्दी में मित्रवंश के राजाओं ने अहिच्छत्र में राज किया। कुछ विद्वानों ने इस वंश को शुंग राजाओं का वंश सिद्ध करने का प्रयास किया। पर वास्तव में ये प्रांतीय शासक थे, जैसा इस वंश की लंबी, मुद्रांकिन नामों के आधार पर बनी, तालिका से प्रतीत होता है। इसके बाद का इतिहास नहीं मिलता। गुप्तसाम्राज्य में नि:संदेह यह एक भुक्ति था। चीनी चात्री युवान च्वांग ने यहाँ पर १० बौद्ध विहार और नौ मंदिर देखे थे। ११वीं शताब्दी में इसका राजनीतिक महत्व जाता रहा।
 
[[श्रेणी:पौराणिक स्थान|अहिच्छत्र]]
== सन्दर्भ ग्रन्थ ==
* कनिंघम : आर्केयोलाजिकल सर्वे ऑव इंडिया, भाग १;
* बी.सी. लाह्व : पाँचाल और उनकी राजधानी अहिच्छत्र (अंग्रेजी में);
* ए. घोष : अहिच्छत्र के ठीकरे (अंग्रेजी में);
* के.सी. पाणिग्राही : ऐंशिऐंट इंडिया, भाग १.
 
[[श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास]]