"विद्याधर चक्रवर्ती": अवतरणों में अंतर
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'''विद्याधर चक्रवर्ती | विद्याधर भट्टाचार्य (?) | [[विद्याधर]]''' (१६९३-१७५१) [[भारत]] के नगर-नियोजन के पुरोधा थे। आज से 286 साल पहले [[जयपुर]] जैसा सुव्यवस्थित और आधुनिक नगर बसाने के [[आमेर]] महाराजा [[सवाई जयसिंह]] के सपने को साकार करने में उनकी भूमिका सबसे निर्णायक और महत्वपूर्ण रही। [[गणित]], [[शिल्पशास्त्र]], [[ज्योतिष]] और [[संस्कृत]] आदि विषयों में उनकी असाधारण गति थी।
[[File:JAIGARH FORT in AMER Vidyadhar's Architecture.JPG|thumb| सब से पहले विद्याधर ने जिसकी रचना की : किला [[जयगढ़]], [[आमेर]] ]]
विद्याधर [[बंगाल]] मूल के एक गौड़-[[ब्राह्मण]] थे, जिनके दस वैदिक ब्राह्मण पूर्वज आमेर-राज्य की कुलदेवी [[दुर्गा]] शिलादेवी की शिला [[खुलना]]-उपक्षेत्र के [[जैसोर]] (तब पूर्व [[बंगाल]]), अब [[बांग्लादेश]]) से लाने के समय [[जयपुर]] आये थे। उन्हीं में से एक के वंशज विद्याधर थे।<ref>1.जयपुर-दर्शन' प्रकाशक : 'जयपुर अढाईशती समारोह समिति' प्रधान-सम्पादक :
==जन्म-और मृत्यु-तिथि==
जयपुर [[इतिहास]] के जाने माने विद्वान और अनुसंधानकर्ता
==दीवान पद पर पदोन्नति==
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==सम्मान-पुरस्कार और स्मृति-चिन्ह ==
सन १७२७ में जयगढ़( देखें चित्र) पूरा होने पर इन्हें 'सिरोपाव'सम्मान मिला, १७३४ में चन्द्रमहल बनवाने पर पुनः सिरोपाव, और सन १७३५ में झोटवाडा के पास 'दर्भावती नदी' | 'द्रयावती' (बांडी नदी) से नहर बनवा कर उसका पानी जयपुर शहर में लाने पर एक बड़ा राजसम्मान 'सिरोपाव' मिला|<ref>'जयपुर-दर्शन' जयपुर अढाई शती समारोह समिति: संपादक :
इसी बारे में [[यदुनाथ सरकार]] ने अपनी पुस्तक' [[जयपुर का इतिहास]]' (' अ हिस्ट्री ऑफ़ जयपुर') के पृष्ठ १९६ पर लिखा है-" जैसा जयपुर राज्य के कागजात (अभिलेख) से ज़ाहिर है, विद्याधर का सम्मान और ओहदा एक वास्तुविद के रूप में जयपुर-सरकार में निश्चित रूप से ऊंचा था| सन १७२९ ईस्वी में उन्हें 'देश-दीवान' पद पर पदोन्नत किया गया, सन १७३४ में 'सात-मंजिल के राजमहल को शीघ्र पूरा करवाने' और वर्ष १७३५ में 'द्रयावती' नदी का पानी जयपुर में लाने' के उपलक्ष्य में के लिए राज्य से सम्मानित किया गया| इस बात की पुष्टि भी जयपुर अभिलेखों से होती है- उन्हें इसके अलावा भी अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले जिनमें २३ फरवरी १७५१ को उन्हें एक हाथी भेंट किये जाने का (लिखित) प्रमाण भी शामिल है|..."<ref>3.Jadunath Sarkar: "A history of Jaipur': Orient Black Swan:Hyderabad: 2011 Reprint: ISBN 978 81 250 3691 3</ref>
[[जयपुर]] राजदरबार में [[विद्याधर]] का सम्मान इतना था कि "उनके पुत्र मुरलीधर चक्रवर्ती को न केवल अपने पिता का पद सौंपा गया बल्कि 5,000 रुपये सालाना की वार्षिक आय की जागीर भी| "<ref> 4.'जयपुर-दर्शन' जयपुर अढाई शती समारोह समिति: संपादक :
जिस सुन्दर शहर का नक्शा ऐसे गुणवान नगर-नियोजक ने बनाया था, आज उस जयपुर में उन्हीं वास्तुविद [[विद्याधर]] के कोई वंशज नहीं बचे हैं, पर जयपुर-आगरा महामार्ग पर 'घाट की घूनी' में बनाया गया मुग़लों की 'चारबाग' शैली पर आधारित एक सुन्दर उद्यान 'विद्याधर का बाग' और त्रिपोलिया बाज़ार में 'विद्याधर के रास्ते' में स्थित उनकी पुश्तैनी-हवेली, उनकी धुंधली सी याद को यथासंभव सुरक्षित रखे हुए हैं| [[जयपुर विकास प्राधिकरण]] ने [[ अहमदाबाद]] के प्रसिद्ध वास्तुविद [[बालकृष्ण विट्ठल दास दोषी]] (जन्म 26 अगस्त 1927-) के नक़्शे से उनके नाम पर एक पूरा का पूरा विशाल उपनगर 'विद्याधर नगर' ही जयपुर-सीकर रोड पर बसाया है|
==परिवार==
इतिहास से ज्ञात होता है एक पुत्र मुरलीधर के अलावा विद्याधर के दो पुत्रियाँ भी थीं- मायादेवी और कम्यादेवी. मायादेवी ने त्रिपोलिया के बाहर 'चौड़े-रास्ते' में प्रसिद्ध शिवालय 'ताड़केश्वरजी मंदिर' की प्रतिष्ठा करवाई और यों अपने पिता की स्मृति को चिरस्थाई बनाया, वहीं आमेर के 'बकाण के कुँए' के पास एक और शिव-मंदिर भी ( संभवतः अपने पिता की याद में (?) निर्मित करवाया. इन्हीं मायादेवी के पुत्र ''हरिहर चक्रवर्ती'' की [[महाराजा ईश्वरीसिंह]] के शासन में 'देश-दीवान' के मंत्री-पद पर नियुक्ति की गयी.<ref> 5.'जयपुर-दर्शन' प्रकाशक : प्रधान-सम्पादक : [
[[File:The Indur Mahal -Chandra Mahal- from the garden, Jeypore.jpg|thumb| जयपुर का 'चन्द्रमहल' : जिसके वास्तुविद विद्याधर थे ]]
==विद्याधर के पूर्वज और मथुरा के राजा कंस की शिला==
विद्याधर के वंशज (प्रपौत्र के पौत्र) सूरजबक्श की जानकारी<ref> 6. 'जयपुर-दर्शन' प्रकाशक : 'जयपुर अढाईशती समारोह समिति' प्रधान-सम्पादक :
''जैसोर के राजा विक्रमादित्य का पुत्र प्रतापादित्य [[मथुरा]] से इसी शिला को अपने पिता के राज्य [[जैसोर]] (बंगाल) ले गया. जब वह राजा बना, तो आमेर के [[राजा मानसिंह]](प्रथम) ने (बंगाल-बिहार के सूबेदार के नाते) जैसोर को मुग़ल सत्ता के अधीन करने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया. प्रतापादित्य को युद्ध में पराजित कर अकबर के सेनापति [[राजा मानसिंह]] इस शिला को [[आमेर]] ले आये." ''उस 'भयंकर' शिला के साथ विद्याधर के पूर्वज दस वैदिक बंगाली ब्राह्मण भी आमेर आये थे जिनकी चर्चा ऊपर की गयी है. "तांत्रिक-पद्धति से पूजा अर्चना करने वाले वैदिक [[बंगाली]] ब्राह्मणों के परामर्श से इस शिला पर अष्टभुजा [[महिषासुर]]मर्दिनी | [[महिषासुर मर्दिनी]] की सुन्दर प्रतिमा उत्कीर्ण करवाई गयी"''<ref> 7.'जयपुर-दर्शन' प्रकाशक : प्रधान-सम्पादक : [
और आमेर महलों में एक मंदिर निर्मित करवा कर विधिवत प्रतिष्ठित कर दी गयी. आज भी आमेर के राजप्रासाद में यही मूर्ति विद्यमान है. पशुबलि पर कानूनी-प्रतिबन्ध लगने से पहले इस विग्रह पर एक समय [[दुर्गा]] [[अष्टमी]] के दिन जीवित महिष (भेंसे) (और बाद में बकरे) की बलि भी दी जाती थी.
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==पठनीय-सामग्री==
1. 'जयपुर-दर्शन' प्रकाशक : प्रधान-सम्पादक : [
2. 'संस्कृत-कल्पतरु' : संपादक [[कलानाथ शास्त्री]] एवं घनश्याम गोस्वामी: मंजुनाथ शोध संस्थान, सी-8, पृथ्वीराज रोड, सी-स्कीम, जयपुर-302001 से प्राप्य
3.
4. यदुनाथ सरकार : The History of Jaipur :Orient BlackSwan :
5.
6.कविशिरोमणि [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]]: [[जयपुर-वैभवम]][http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/J/Jaipurvaibhavam.pdf]
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