"व्यवहार प्रक्रिया": अवतरणों में अंतर

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== अभ्यानुकूलित प्रतिवर्त (कंडीशंड रिफ्लेक्स) ==
अनेक बार विशेष उद्दीपक की संगति से सहज क्रिया में परिवर्तन आ जाता है। यथा मिठाई खाने से मुख में रसस्राव एक सहज क्रिया है। किंतु मिठाई के दर्शन अथवा नाम के सुनने मात्र से भी लार टपकने लगती है। इसका कारण ग्रंथिस्राव की सहज क्रिया का, अर्थात् संलग्न नसों का रूप, शब्द विशेष की ज्ञानेंद्रिय से एक नवीन अवांतरित संयोग होता है। किंतु अनेक आकृति द्वारा नस संयोग के अवांतरित होने से यह एक '''अभ्यानुकूलित प्रतिवर्त''' (कंडीशंड रिफ्लेक्स) का नवीन रूप ले लेती है। "अभ्यानुकूलित" क्रियाओं का भी कोई पूर्वगामी या सहचारी चेतना अनुभव नहीं होता, और आचरण भी व्यक्ति की इच्छा के अधीन नहीं होता। इसमें चेतन इच्छा की उपेक्षा, तथा सूक्ष्म दैहिक नस संयोग की स्वतंत्रता का ही संकेत प्राप्त होता है। सामाजिक आदर्श व आचरण के सतत् प्रभाव से जहाँ एक व्यक्ति मांसाहार परोसे जाने के समाचार से खिन्न होता है, वहीं दूसरा प्रसन्न होता है। इसी प्रकार पूर्वानुभव वा अभ्यानुकूलन भेद से एक जन विदेशी वस्तु के आभास मात्र से आनंदित, और अन्य क्रुद्ध होता है। स्वजातीय सांप्रदायिक व्यक्तियों के साथ सौजन्य तथा मित्रता, परंतु विजातीय वर्ग के प्रति स्वाभाविक वैरभावना की अभ्यानुकूलन का उदाहरण है। आधुनिक युग में सर्वप्रथम इसका महत्व एक रूसी वैज्ञानिक प्रो.प्रो॰ आईवन पेट्रोविच पैवलॉव ने सुझाया। अमरीका के एक वैज्ञानिक डा. जॉन बी. वाटसन ने इस सिद्धांत को अत्यंत लोकप्रिय बनाया। सामाजिक आचरण की अनेक गुत्थियों को सुलझाने में इस अभ्यानुकूलन प्रक्रिया का उपयोग होता है।
 
== सहज एवं मूल प्रवृत्ति ==