"घनानन्द": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो पूर्णविराम (।) से पूर्व के खाली स्थान को हटाया। |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया। |
||
पंक्ति 4:
घनानन्द मुहम्मदशाह रंगीले के दरबार में खास-कलम (निजि सचिव) थे। इस पर भी - [[फारसी]] में माहिर थे- एक तो [[कवि]] और दूसरे सरस [[गायक]]। प्रतिभासंपन्न होने के कारण बादशाह का इन पर विशष अनुग्रह था। [[भगवान् कृष्ण]] के प्रति अनुरक्त होकर वृंदावन में उन्होंने निम्बार्क संप्रदाय में दीक्षा ली और अपने परिवार का मोह भी इन्होंने उस भक्ति के कारण त्याग दिया। मरते दम तक वे राधा-कृष्ण संबंधी गीत, कवित्त-सवैये लिखते रहे। [[विश्वनाथप्रसाद मिश्र]] के मतानुसार उनकी मृत्यु [[अहमदशाह अब्दाली]] के [[मथुरा]] पर किए गए द्वितीय आक्रमण में हुई थी।<ref>{{cite web |url= http://hi.braj.org/index.php?option=com_content&view=article&id=150:mathura&catid=72:2009-06-24-10-38-35|title=घनानंद |accessmonthday=[[२० नवंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=पीएचपी|publisher=ब्रज.कॉम|language=}}</ref> कवि घनानंद दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के मीर मुंशी थे। कहते हैं कि सुजान नाम की एक स्त्री से उनका अटूट प्रेम था।<ref>{{cite web |url= http://kavyakala.blogspot.com/2009/03/2.html|title=घनानंद की कविता 2|accessmonthday=[[२० नवंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=काव्यकला|language=}}</ref> उसी के प्रेम के कारण घनानंद बादशाह के दरबार में बे-अदबी कर बैठे, जिससे नाराज होकर बादशाह ने उन्हें दरबार से निकाल दिया। साथ ही घनानंद को सुजान की बेवफाई ने भी निराश और दुखी किया। वे वृंदावन चले गए और निंबार्क संप्रदाय में दीक्षित होकर भक्त के रूप में जीवन-निर्वाह करने लगे। परंतु वे सुजान को भूल नहीं पाए और अपनी रचनाओं में सुजान के नाम का प्रतीकात्मक प्रयोग करते हुए काव्य-रचना करते रहे। घनानंद मूलतः प्रेम की पीड़ा के कवि हैं। वियोग वर्णन में उनका मन अधिक रमा है।
== काव्यगत विशेषताएँ ==
उनकी रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल, आवेगमय
== रचनाएँ ==
घनानंद द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या ४१ बताई जाती है पर अब जो रचनाएँ मिलती है उनके नाम हैं सुजान हित,प्रेम सरोवर, गोकुल विनोद, प्रिय प्रसाद,प्रेम पत्रिका | घनानंद ग्रंथावली में उनकी १६ रचनाएँ संकलित हैं घनानंद के नाम से लगभग चार हजार की संख्या में कवित और सवैये मिलतें हैं | इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना 'सुजान हित ' है, जिसमें ५०७ पद हैं | इन में सुजान के प्रेम,रूप,विरह आदि का वर्णन हुआ है | [[सुजान सागर]], [[विरह लीला]], [[कृपाकंड निबंध]], [[रसकेलि वल्ली]] आदि प्रमुख हैं। उनकी अनेक रचनाओं का अँग्रेज़ी अनुवाद भी हो चुका है।
|