"माधव निदान": अवतरणों में अंतर

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इस ग्रन्थ के निर्माण में चिकित्सा-जगत में तत्कालीन प्रचलित अनेक मुनियों के ज्ञान को रोगों के पञ्चनिदान उपद्रव एवं अरिष्ट लक्षणों के रूप में समाहित किया गया है। वस्तुतः इस ग्रन्थ के निर्माण में प्रमुख रूप से [[चरकसंहिता]], [[सुश्रुतसंहिता]] एवं [[अष्टाङ्गहृदय]] आदि ग्रन्थों से सङ्ग्रहीत रोगनिदान एवं इन संहिताओं में अनुपलब्ध रोगों के निदान का तत्कालीन अन्य ग्रन्थों एवं स्वयं के नैदानिक अनुभव के आधार पर सङ्कलन करके श्रीमाधवकर द्वारा रोगविनिश्चय नामक इस नैदानिक ग्रन्थ का प्रणयन हुआ है। माधवकर का अभिमत है कि अल्प मेधस्वी वैद्यों द्वारा विविध चिकित्सा-ग्रन्थों के उपयोग के बिना भी मात्र इस एक ग्रन्थ के सम्यक् उपयोग से सभी रोगों का सम्यक् निदान किया जा सकता है।
 
== संरचना ==
हेतुलिङ्गौषध रूपी त्रिस्कन्ध के अन्तर्गत प्रथम दो स्कन्धों - हेतु एवं लिङ्ग का विवेचन ही माधवनिदानम में किया गया है। माधवनिदान के प्रथम अध्याय में पञ्चनिदान (निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय और सम्प्राप्ति) का सामान्य वर्णन करने के पश्चात् द्वितीय अध्याय से उनसठवें (६९) अध्यायों तक ज्वर आदि तत्कालीन प्रचलित सभी रोगों के निदान का वर्णन किया गया है तथा ग्रन्थ के अन्त में विषयानुक्रमणिका देकर ग्रन्थ को इतिश्री प्रदान की गई है।
 
== टीकाएँ==
यद्यपि यह ग्रन्थ अत्यधिक सरल है तथापि पश्चात्कालीन चिकित्सकों एवं आचार्यों को ग्रन्थ के पठन-पाठन एवं रोगों के निदान में उत्पन्न कठिनाइयों को दूर करने के लिए बृहत्त्रयी के समान ही इस ग्रन्थ पर भी बहुत सी व्याख्यायें लिखी गई। वर्तमान में माधवनिदान पर [[विजयरक्षित]] और [[श्रीकण्ठदत्त]] द्वारा (पञ्चनिदान से अश्मरीनिदान पर्यन्त व्याख्या विजयरक्षित द्वारा एवं प्रमेह-प्रमेहपिडकानिदान से ग्रन्थसमाप्ति पर्यन्त व्याख्या उनके शिष्य श्रीकण्ठदत्त द्वारा) रचित [[मधुकोश]] एवं [[वाचस्पति वैद्य]] द्वारा रचित [[आतङ्कदर्पण]] व्याख्यायें पूर्ण रूप में उपलब्ध है। इनमें भी मधुकोश व्याख्या का अधिक प्रचलन होने के कारण आतङ्कदर्पण व्याख्या भारतभर में कतिपय वृद्ध वैद्यों के पास ही प्राप्त होती है।
 
== बाहरी कड़ियाँ==
*[http://niimh.ap.nic.in/ebooks/madhavanidana/?mod=about माधवनिदान] (ई-पुस्तक)
*[http://books.google.co.in/books?id=rlUL5cOpVWUC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false माधवनिदान] (गूगलपुस्तक ; अनुवादक: आचार्य नरेन्द्रनाथ शास्त्री)