"जगन्नाथदास रत्नाकर": अवतरणों में अंतर

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संक्षेप में रत्नाकर जी की भाषा संयत, प्रौढ़ और प्रवाह पूर्ण है।
 
'''शैली'''- रत्नाकर जी की शैली रीतिकाल की अलंकृत शैली है। उनकी इस शैली में सूरदास और मीरा की भावुकता, देव की प्रेममयता, बिहारी की कलात्मकता, पद्माकर की प्रभावोत्पादकता, और भूषण की ओजस्विता का सुंदर समन्वय है। रत्नाकर जी की शैली में भाव और भाषा का पूर्ण संयोग हैं।
 
'''रस'''- यों रत्नाकर जी के काव्य में सभी रस मिलते हैं, पर शृंगार, करुण वीर और वीभत्स रस के चित्रण में उन्हें विशेष सफलता मिली है।