"जीवाश्मविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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=== जीवाश्मिकी और जातिवृत्त (Phylogeny) ===
जीवविज्ञानी जीवाश्मिकी में इसलिए अत्यधिक अभिरुचि रखते हैं कि इसका जीवविकास जैसे विषय से निकट संबंध है। प्राणियों और पादपों की जातियों का इतिहास अथवा जातिवृत्त, स्तरित शैलों के अनुक्रमित स्तरों से प्राप्त किए जीवाश्मों के अध्ययन के आधार पर अधिक विश्वासपूर्वक अनुरेखित किया जा सकता है। परंतु जीवों के अपूर्ण अभिलेख के कारण उनके जातिवृत्त के अनुरेखन में अत्यधिक बाधा पड़ती है, क्योंकि भौमिकीय युगों में पाए जानेवाले प्राणियों और पादपों में से कुछ ही, और उनमें से अधिकांश अपूर्ण दशा में, इन शैलों में परिलक्षित पाए जाते हैं। अभिलेख की इस अपूर्णता के बावजूद अनेक जीववर्ग में, जब उनका अनुरेखन शैलों के एक स्तर से दूसरे स्तर में किया जाता है तब, शनै: शनै: परिवर्तन होने लगते हैं। जब जीवाश्मों के प्रतिरूप विभिन्न अनुक्रमित स्तरों से एकत्रित किए जाते हैं, तब प्रत्यक्ष रूप से दो भिन्न दिखाई पड़नेवाली जातियाँ बीच के जीवाश्मों द्वारा संबंधित दिखाई पड़ती हैं और निम्नतम स्तर में पाई जानेवाली जाति से लेकर उच्चतम स्तर में मिलनेवाली जाति तक के बीचवाले स्तरों के जीवाश्मों के जीवों में हुए परिवर्तनों को देखा जा सकता है।
 
जीवाश्मों से जातिवृत्त का पता लगाने के लिए, स्तरीय रीति के अतिरिक्त शारीर तथा व्यतिवृत्त (ontogeny) की तुलनात्मक रीतियों का भी प्रयोग किया जा सकता है। अत: जीवाश्मिकी इस धारणा की पुष्टि करता है कि जीवविकास शनै: शनै: तथा क्रमश: होनेवाले परिवर्तनों के परिणामस्वरूप हुआ। इस बात के बताने का भी प्रमाण है कि जीव विकास नियतविकासीय (orthogenetic) था। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ जीवों के वर्ग में जीवविकासीय परिवर्तन युग युगांतर तक किसी निश्चित दिशा में हुए और इसके अतिरिक्त ऐसे संबद्ध वर्ग जो एक ही पैतृक उत्पत्ति के हैं, एक दूसरे से तथा बाह्य दशाओं से बिना प्रभावित हुए, अपने विकास में समान अवस्थाओं अथवा उससे मिलती जुलती अवस्थाओं में से गुजरे, जिससे यह प्रकट हो जाता है कि जीवों के विभिन्न वर्गों में विकास की दिशा, सर्वसाधारण पूर्वज से पैतृक गुणों द्वारा निश्चित हो जाती है।