"ज़ाक देरिदा": अवतरणों में अंतर
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वहाँ के फ्राँसिसी प्रशासकों ने डेरिडा को 1942 में उनके स्कूल जाने के पहले दिन ही [[Vichy France|विचे]] सरकार की यहूदियो के प्रति भेदभाव की नीति अपनाते हुये निष्कासित कर दिया था। उन्होंने विस्थापित यहूदी अध्यापकों और विद्यार्थियों द्वारा आरम्भ किये स्कूल जाने के बजाये एक वर्ष के लिए गोपनीय तरीके से स्कूल से अनुपस्थित रहना अधिक बेहतर समझा। इस बीच कईं फुटबाल प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए – वे एक व्यवसायिक खिलाड़ी बनने का सपना संजोय थे – वे रूसो, अल्बर्ट कामू, फ्रेदरिक नीत्सचे और आन्द्रे ज़ीड जैसे दार्शनिकों और लेखकों को पढ़ते रहे। उन्होंने दर्शन शास्त्र के विष्य में गम्भीरता से लगभग 1948 और 1949 में सोचना शुरू किया। वे पेरिस के लुई-ल-ग्राँद स्कूल में विद्यार्थी बनें, जहाँ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। 1951–52 में अपने स्कूल के अध्ययन वर्ष के अन्त में वे इकोल नोरमेल सुपेरियर की प्राम्भिक परीक्षा में तीसरे प्रयास में ही सफल हो पाये।
इकोल नोरमेल सुपेरियर में पहले दिन वे लुई आल्थुसर से मिले, जो उनके मित्र बन गए। वे मिशेल फूको के भी मित्र बने, जिनके लेक्चर में वे जाया करते थे। लुवैं, बेलजियम, में हसरल लेखागार जाने के बाद उन्होंने हसरल पर अपना लेक्चर 'The Origin of Geometry' पूरा किया। डेरिडा को हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए छात्रवृति मिली
इस युद्ध के बाद डेरिडा ने तेल कैल समूह से जुड़े साहित्यिक तथा दार्शनिक सिद्धाँतवादियों से एक लंबा चलने वाल संवाद आरम्भ किया। इसी समय में डेरिडा ने 1960 से लेकर 1964 तक सॉरबॉन में और 1964 से 1984 तक इकोल नोरमेल सुपेरियर में दर्शन पढ़ाया। उनकी पत्नी मारग्रीट ने उनके पहले बच्चे, पियेर, को 1963 में जन्म दिया। 1966 में जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में दिये गए उनके लेक्चर 'Structure, Sign and Play in the Discourse of the Human Sciences' के साथ ही उनके सिद्धाँतों को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिलने लगी। उनके दूसरे पुत्र ज़ाँ का जन्म 1967 में हुया। इसी वर्ष डेरिडा की पहली तीन पुस्तकें – ''Writing and Difference, Speech and Phenomena,'' और ''Of Grammatology'' – छपीं, जिनसे वे विख्यात हुये।
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'''परिचय'''
डेरिडा ने अपनी बात को कहना और लिखना तब प्रारम्भ किया जब फ्रांसीसी बौद्धिक दृश्य व्यक्ति तथा सामूहिक जीवन को समझने की संरचनावादी (structuralist) तथा दृश्यप्रपंच वैज्ञानिक (phenemological) धाराओं में तीव्रता से बंट रहा था। वे दार्शनिक जो दृश्यप्रपंच विज्ञान के प्रति रूझान रखते थे उनका उद्देश्य अनुभव को समझने के लिये उसके उद्गम को समझना तथा उसका विवरण देना था, जिससे वे अनुभव के विकास की प्रक्रिया को किसी आरम्भिकता अथवा घटना से जोड़ सकें। परन्तु संरचनावादियों के लिये यह एकदम गलत कठिनता थी
दूसरे शब्दों में, हर तंत्र अथवा समकालिक प्रक्रिया का एक इतिहास होता है, तथा संरचनाओं को उनके उद्गम को समझे बिना नहीं समझा जा सकता। साथ ही, गति सुनिश्चित करने के लिए आरम्भिकता कोई विशुद्ध एकत्व अथवा सामान्यता नहीं हो सकती, बल्कि इसे पहले से ही ऐसे परिभाषित होना चाहिए कि इससे एक ऐतिहासिक प्रक्रिया का उद्गम हो सके। इस आसतित्व-सूचक जटिलता को एक मूलभूत सिद्धान्त नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि इसे उद्गम का अभाव माना जाना चाहिए, जिसे डेरिडा ने iterability, नक्श या पाठात्मकता (textuality) कहा है। आस्तित्व-सूचक जटिलता का यह विचार, न कि आरम्भिक शुद्धता, उद्गमता तथा संरचना के विचारों को असंतुलित करता है तथा डेरिडा के दर्शन का आधार है, जिससे विरचना सहित इस दर्शन की सभी परिभाषायें निकलती हैं।
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