"डॉकयार्ड": अवतरणों में अंतर

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२०वीं शती के प्रारंभकाल में उत्तर सागर में जर्मनों के बढ़ते हुए संकट को रोकने के लिए, सुदूर उत्तर में पूर्वी तट पर, नया अड्डा बनाया गया, जहाँ पहुँचना चैटेम की अपेक्षा सरल था। १९०३ ई० में रोसाइथ (Rosyth) में नया अड्डा स्वीकृत हुआ, जो आगे चलकर प्रथम विश्वयुद्ध में वरदान सिद्ध हुआ। १९३९ ई० में इसका बड़ी श्घ्रीाता से अधिक विस्तार हुआ।
 
[[प्रथम विश्वयुद्ध]] में [[इंग्लैंड]] के अधीन रोसाइथ, पोर्टस्मथ, प्लिमथ, चैटेम, और मॉल्टा अड्डे थे, जिनकी छोटी शाखाएँ शीरनेस, पोर्टलैंड, हॉलबोलिन (Haulbowline) और पेंब्रोक में थीं। जिब्रॉल्टर-हांगकांग, बरम्यूडा, साइमंज़टाउन और सिडनी के बड़े तथा कोलबों, वेहाइवे (चीन) और बंबई तथा कलकत्ते के छोटे अड्डे भी युद्ध में सहायक हुए।
 
[[द्वितीय महायुद्ध]] छिड़ जाने पर वेहाइवे चीन के और हॉलबोलिन आयरलैंड के अधिकार में चला गया। शेष सब अड्डे अंग्रेज़ों के अधीन रहे। जापान के आक्रमण को रोकने के लिए सिंगापुर में एक विशाल डॉकयार्ड स्थापित हुआ, किंतु वह शीघ्र ही हाथ से निकल गया। युद्धकाल में स्कॉटलैंड, मिस्त्र, पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका, लंका और आस्ट्रेलिया में नए अड्डों का निर्माण हुआ तथा बंबई, कलकत्ता, विशाखपटणम्‌, केपटाउन और मैडागैस्कर के अड्डों में अधिक सुविधाओं की व्यवस्था हुई।
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प्रत्येक डॉकयार्ड ऐडमिरल या कप्तान अधीक्षक के अधीन रहता है। उनका सहायक अधिकारी पत्तन में जहाजों के चलाने और घाट लगाने का उत्तरदायी होता है। निर्माण-प्रबंधक, नौ सेना भांडार अधिकारी, विद्युत्‌ इंजीनियर, सिविल इंजीनियर, खजांची, आय-व्यय लेखा अधिकारी और चिकित्सा अधिकारी, डॉकयार्ड के अन्य मुख्य अधिकारी हैं। तोप और तारपीडोकी प्राविधिक बातों का पर्यवेक्षण स्थानीय गनरी स्कूल के कप्तान करते हैं। विभिन्न अधिकारियों में परस्पर व्यक्तिगत संपर्क होते रहने के कारण कार्य का परिचालन सुचारु रूप से होता है और कार्य प्रगति करता रहता है।
 
'''फ्रांस''' -- संपूर्ण फ्रांसीसी तट को तीन विभागों में बाँटा गया है। शेयरवूर्ग, ्व्रोस्ट, और टुलॉन बंदरगाहों पर इसके प्रधान कार्यालय हैं। इनमें यार्डों को सुसज्जित किया जाता है और उनका निर्माण होता है।
 
'''जर्मनी''' -- २०वीं शती के प्रारंभ में विलहेल्म्स हाफेन और कील में दो बड़े और आधुनिक डॉकयार्डों का निर्माण हुआ। कुक्सहाफेन, ब्रेमरहावेन, फ्लेंसबूर्क, स्वाइनमंड, डैनज़िग आदि स्थानों पर छोटे से संस्थापन थे। विश्वयुद्ध में बमबारी से इनकी भारी क्षति हुई।
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'''जापान''' -- १८६५ ई० में योकोसूका में पहला डॉकयार्ड बन जाने के बाद प्रगति का क्रम तेजी से चला। प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो जाने पर आधुनिक जहाजों के निर्माण की सुविधाएँ उपलब्ध थीं। छोटे अड्डों के अतिरिक्त सासेबो और माइजुरू में दो नए डॉकयार्ड बने।
 
'''रूस''' -- प्रधान डॉकयार्ड लेनिनग्रैड और निकोलेयर में हैं, आर्केजिल, क्रोंस्टाट, सेवास्टोपॉल, ओडेसा, और ब्लैडिवॉस्टॉक में छोटे संस्थापन हैं।
 
'''स्पेन''' -- २०वीं शती के मध्यकाल में फेरॉल, कार्टाजीना और काडिज़ के पुराने डॉकयार्डों के सुधार में विशेष प्रगति नहीं हुई, किंतु बेड़े का आधुनिकीकरण स्थिरता से हो रहा था।