"थेरगाथा": अवतरणों में अंतर

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'''थेरगाथा''', [[खुद्दक निकाय]] का आठवाँ ग्रंथ है। इसमें 264 थेरों के उदान संगृहीत हैं। ग्रंथ 21 निपातों में है। पहले निपात में 12 वर्ग हैं, दूसरे निपात में 5 वर्ग हैं, और शेष निपातों में एक एक वर्ग है। गाथाओं की संख्या 1279 हैं।
 
थेरगाथा में परमपद को प्राप्त थेरों के उदान अर्थात् उद्गारपूर्ण गाथाएँ हैं। विमुक्तिसुख के परमानंद में उनके मुख से निकली हुई ये गीतात्मक उक्तियाँ हैं। आध्यात्मिक साधना के उच्चतम शिखर पर पहुँचे हुए उन महान् साधकों के, आर्य मार्ग के उन सफल यात्रियों के, ये जयघोष हैं। संसार के यथास्वभाव को समझ कर जन्ममृत्यु पर विजय प्रापत करनेवाले उन महान् विजेताओं के ये विजयगान हैं। इन गाथाओं में आध्यात्मिक परिशुद्धि की, आत्मविजय की और परम शांति की हर्षध्वनि गूँजती है।
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संकिच्च थेर इसी दृश्य से प्रेरित हो कर गाते हैं : "जब वर्षा ऋतु में झंझावात मेघों को उड़ा ले जाता है, तब मेरे मन में निष्कामता से युक्त विचार उठते हैं।"
 
पर्वतों के दृश्य से प्रेरित होकर महाकस्सप थेर गाते हैं : "वर्षा के पानी से प्रफुल्लित, मोरों के नाद से प्रतिध्वनित, और ऋषियों से सेवित जो रम्य पर्वत हैं, वे मुझे प्रिय हैं।"
 
चित्तक थेर मोर की आवाज से उठकर गाते हैं : "नील ग्रीवा और शिखावाले मोर करवीय वन में गाते हैं। शीतल वायु से प्रफुल्लित हो मधुर गीत गानेवाले वे सोये हुए योगी को जगाते हैं।"