"दन्तचिकित्सा": अवतरणों में अंतर

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== भारत में दंतचिकित्सा ==
भारत में दंतचिकित्सकों और उनके सहायकों की बड़ी कमी है। स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य परिस्थितियों के संरक्षण के लिये सरकार ने भोर समिति नियुक्त की थी। उसका प्रतिवेदन 1946 ई में उपस्थित किया गया था। उसकी संस्तुति है कि 5,000 व्यक्तियों के पीछे एक दंतचिकित्सक अवश्य होना चाहिए, यद्यपि पाश्चात्य देशों में 3,000 व्यक्तियों के पीछे कम से कम एक दंतचिकित्सक परमावश्यक समझा जाता है। भोर समिति की संस्तुति के अनुसार 30-35 वर्षों में 75,000 दंतचिकित्सकों की आवश्यकता पड़ेगी। फलत: इस काल में कम से कम ढाई हजार दंतचिकित्सक प्रति वर्ष प्रशिक्षित करने पड़ेंगे। ऐसा तभी संभव है जब 25 दंतचिकित्सक विद्यालय खोले जायँ, जिसमें प्रति वर्ष 100 विद्यार्थी भरती किए जायँ। इस समय 4,00,000 व्यक्तियों के पीछे केवल एक दंतचिकित्सक है। न्यूज़ीलैंड में पहले इसी प्रकार दंतचिकित्सकों की कमी थी और उसकी पूर्ति दंतचिकित्सक परिचारिकाओं के प्रशिक्षण से की गई। उनका प्रशिक्षण दो वर्ष तक होता था। उनकी न्यूनतम योग्यता यह थी कि वे हाई स्कूल परीक्षा पास हों। इन परिचारिकाओं में इतनी योग्यता आ जाती थी कि वे दंतचिकित्सा की सरलतम क्रियाएँ कर सकें। साधारण दंतचिकित्सक का अधिकतर समय इन्हीं सरल क्रियाओं में लग जाता है। इनमें विशेष निपुणता की आवश्यकता नहीं होती। भारत में बहुत से हाई स्कूल उत्तीर्ण व्यक्ति बेकार बैठे रहते हैं। उनमें से कई एक इस काम को सुगमता से सीख सकते हैं। प्रशिक्षित होने पर वे योग्य दंतचिकित्सकों की देखरेख में अस्पतालों तथा दाँत के स्कूलों में सहायक का काम कर सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को "दंतरक्षक" कहा जा सकता है। उन्हें सरकारी खर्च से प्रशिक्षित किया जा सकता है, और उनसे अनुबंध लिखा लिया जा सकता है कि वे पाँच से दस वर्ष तक अवश्य काम करेंगे।
 
संस्तुति की गई है कि तीन प्रकार के व्यक्ति प्रशिक्षित किए जायँ :
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== दंतचिकित्सा साहित्य ==
संसार में दंतचिकित्सा पर अनेक पुस्तकें और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं, जिनमें युनाइटेड स्टेंट्स, अमरीका, और ग्रेट ब्रिटेन अग्रगामी हैं। भारत में "दि जर्नल ऑव ऑल इंडिया डेंटल ऐसोसिएशन" नामक एक पत्रिका प्रकाशित होती है।
 
== दाँत का बुरुश ==