"याज्ञवल्क्य": अवतरणों में अंतर
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याज्ञवल्क्य ब्रह्मणकालीन प्राचीन आचार्य थे जो [[वैशंपायन]], [[शाकटायन]] आदि की परंपरा में हुए और [[कात्यायन]] ने एक [[वार्तिक]] में उन ऋर्षियों को तुल्यकाल या समकालीन कहा है। (सूत्र 4।3।105 पर वार्तिक)। एक दृष्टि से '''[[याज्ञवल्क्य स्मृति]]''' प्रसिद्ध है। इस स्मृति में 1003 श्लोक हैं। इसपर विश्वरूप कृत बालक्रीड़ा (800-825), अपरार्क कृत याज्ञवल्कीय धर्मशास्त्र निबंध (12वीं शती) और विज्ञानेश्वर कृत मिताक्ष्रा (1070-1100) टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। कारणे का मत है कि इसकी रचना लगभग विक्रम पूर्व पहली शती से लेकर तीसरी शती के बीच में हुई। स्मृति के अंत:साक्ष्य इसमें प्रमाण है। इस स्मृति का संबंध शुक्ल यजुर्वेद की परंपरा से ही था। जैसे मानव धर्मशास्त्र की रचना प्राचीन धर्मसूत्र युग की सामगीं से हुई, ऐसे ही याज्ञवल्क्य स्मृति में भी प्राचीन सामग्री का उपयोग करते हुए सामग्री को भी स्थान दिया गया। कौटिल्य अर्थशास्त्र की सामग्री से भी याक्ज्ञवल्क्य के अर्थशास्त्र का विशेष साम्य पया जाता है। इसमें तीन कांड हैं आचार, व्यवहार और प्रायश्चित। इसकी विषय-निरूपण-पद्धति अत्यंत सुग्रथित है। इसपर विरचित मिताक्षरा टीका हिंदू धर्मशास्त्र के विषय में भारतीय न्यायालयों में प्रमाण मानी जाती रही है।
== इन्हें भी देखें==
*[[याज्ञवल्क्य स्मृति]]
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