"नादिर शाह": अवतरणों में अंतर
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नादिर ने इसके बाद हेरात के अब्दाली अफ़ग़ानों को परास्त किया। तहमाश्प के दरबार में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद उसने १७२९ में राजधानी इस्फ़हान पर कब्ज़ा कर चुके अफ़ग़ानों पर आक्रमण करने की योजना बनाई। इस समय एक [[यूनानी]] व्यापारी और पर्यटक बेसाइल वतात्ज़ेस ने नादिर के सैन्य अभ्यासों को आँखों से देखा था। उसने बयाँ किया - ''नादिर अभ्यास क्षेत्र में घुसने के बाद अपने सेनापतियों के अभिवादन की स्वीकृति में अपना सर झुकाता था। उसके बाद वो अपना घोड़ा रोकता था और कुछ देर तक सेना का निरीक्षण एकदम चुप रहकर करता था। वो अभ्यास आरंभ होने की अनुमति देता था। इसके बाद अभ्यास आरंभ होता था - चक्र, व्यूह रचना और घुड़सवारी इत्यादि.. '' नादिर खुद तीन घंटे तक घोड़े पर अभ्यास करता था।
सन १७२९ के अन्त तक उसने अफ़गानों को तीन बार हराया और इस्फ़हान वापस अपने नियंत्रण में ले लिया। उसने अफ़गानों को महफ़ूज (सुरक्षित) तरीके से भागने दे दिया। इसके बाद उसने भारी सैन्य अभियान की योजना बनाई। जिसके लिए उसने शाह तहमाश्प को कर वसूलने पर मजबूर किया। पश्चिम की दिशा से उस्मानी तुर्क (ऑटोमन)प्रभुत्व में थे। अभी तक नादिर के अभियान उत्तरी, केन्द्रीय तथा पूर्वी ईरान
उसकी सैन्य सफलता तहमाश्प से देखी नहीं गई। उसे तख्तापलट का डर होने लगा। उसने अपनी सैन्य योग्यता साबित करने के मकसद से उस्मानों के साथ फिर से युद्ध शुरू कर दिया जिसका अन्त उसके लिए शर्मनाक रहा और उसे नादिर द्वारा जीते हुए कुछ प्रदेश उस्मानों को लौटाने पड़े। नादिर जब [[हेरात]] से लौटा तो यह देखकर क्षुब्ध हुआ। उसने जनता से अपना समर्थन माँगा। इसी समय उसने इस्फ़हान में एक दिन तहमाश्प (तहमास्य) को नशे की हालत में ये समझाया कि वो शासन के लिए अयोग्य है और उसके ये इशारे पर दरबारियों ने तहमाश्प के नन्हें बेटे [[अब्बास]] को गद्दी पर बिठा दिया। उसके राज्याभिषेक के समय नादिर ने घोषणा की कि वो कन्दहार, दिल्ली, बुखारा और [[इस्ताम्बुल]] के शासकों को हराएगा। दरबार में उपस्थित लोगों को लगा कि यह चरम आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त कुछ नहीं है। पर आने वाले समय में उनको पता चला कि ऐसा नहीं था। उसने पश्चिम की दिशा में उस्मानों पर आक्रमण के लिए सेना तैयार की। पर अपने पहले आक्रमण में उसे पराजय मिली। उस्मानों ने बग़दाद की रक्षा के लिए एक भारी सेना भेज दी जिसका नादिर कोई जबाब नहीं दे पाया। लेकिन कुछ महीनों के भीतर उसने सेना फिर से संगठित की। इस बार उसने [[किरकुक]] के पास उस्मानियों को हरा दिया। [[येरावन]] के पास जून १७३५ में उसने रूसियों की मदद से उस्मानियों को एक बार फिर से हरा दिया। इस समझौते के तहत रूसी भी फारसी प्रदेशों से वापस कूच कर गए।
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