"नासदीय सूक्त": अवतरणों में अंतर

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'''किमावरीवः कुहकस्य शर्मन्नंभः किमासीद् गहनंगभीरम् ॥१॥'''<br />
'''अन्वय'''- तदानीम् असत् न आसीत् सत् नो आसीत्; रजः न आसीत्; व्योम नोयत् परः अवरीवः, कुह कस्य शर्मन् गहनं गभीरम्।<br />
'''अर्थ'''- उस समय अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रलय दशा में असत् अर्थात् अभावात्मक तत्त्व नहीं था. सत्= भाव तत्त्व भी नहीं था, रजः=स्वर्गलोक मृत्युलोक और पाताल लोक नहीं थे, अन्तरिक्ष नहीं था, और उससे परे जो कुछ है वह भी नहीं था, वह आवरण करने वाला तत्त्व कहाँ था और किसके संरक्षण में था। उस समय गहन= कठिनाई से प्रवेश करने योग्य गहरा क्या था, अर्थात् वे सब नहीं थे।<br /><br />
'''न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः।'''<br />
'''अनीद वातं स्वधया तदेकं तस्मादधान्यन्न पर किं च नास ॥२॥'''<br />