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'''पश्चिम की यात्रा''' ([[चीनी भाषा|चीनी]]: 西遊記) [[चीन|चीनी]] साहित्य के चार महान प्राचीन उपन्यासों में से एक है। इसका प्रकाशन [[मिंग राजवंश]] के काल में सन् 1590 के दशक में बेनाम तरीक़े से हुआ था। बीसवी सदी में इसकी लिखाई और अन्य तथ्यों की जाँच करी गई और इसे लिखने का श्रेय वू चॅन्गॅन (吴承恩, 1500-1582) नामक लेखक को दिया गया। इसकी कहानी प्रसिद्ध [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] भिक्षु [[ह्वेन त्सांग]] की [[भारत]] की यात्रा पर आधारित है।<ref name="ref68badiy">{{cite web | title=Journey to the West | author=Cheng'en Wu | publisher=Foreign languages press, 2000 | isbn=9787119024080 | url=http://books.google.com/books?id=8QovAQAAIAAJ}}</ref>
 
ह्वेन त्सांग [[चीन के राजवंश|तंग राजवंश]] के काल के दौरान "[[पश्चिमी क्षेत्र|पश्चिमी क्षेत्रों]]" (जिनमें भारत शामिल है) के दौरे पर बौद्ध सूत्र और ग्रन्थ लेने आये थे। इस उपन्यास में दिखाया गया है कि [[गौतम बुद्ध|महात्मा बुद्ध]] के निर्देश पर गुआन यिन नामक बोधिसत्त्व (एक जागृत आत्मा) ने ह्वेन त्सांग को भारत से धार्मिक ग्रन्थ लाने का कार्य सौंपा। साथ ही उन्होंने ह्वेन त्सांग को शिष्यों के रूप में तीन रक्षक दिए: सुन वुकौंग (एक शक्तिशाली [[वानर]]), झू बाजिए (एक आधा इंसान - आधा सूअर जैसा प्राणी) और शा वुजिंग (एक भैंसे की प्रवृति वाला योद्धा)। इस उपन्यास का मुख्य पात्र सुन वुकौंग (वानर) है, और कभी-कभी इस कहानी को "बन्दर की कहानी", "बन्दर देव की कहानी" या सिर्फ़ "बन्दर" भी कहा जाता है। बहुत से विद्वानों का मानना है कि सुन वुकौंग की प्रेरणा वास्तव में [[हनुमान]] के चरित्र से हुई है।<ref name="jenner">Jenner, W.J.F. (1984). ''Journey to the West'', volume 4.</ref>
 
इस उपन्यास का बहाव ऐसा है कि इसमें इन यात्रियों का भारत के निटक आते जाना जागृति और पुण्य के निकट आते जाने के समान दिखाया गया है।<ref name="jenner"/>