"बाइबिल": अवतरणों में अंतर

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भौगोलिक दृष्टि से बाइबिल का प्रभाव बहुत ही विस्तृत है। शायद यह एक आकस्मिकता हो। मूलत: एक दमित जनता के धर्म के रूप में ईसाइयत अनेक परीक्षणों के पश्चात् अपने विजितों का धर्म बनी।
 
बाइबिल का प्राचीन धर्मनियम (टेस्टामेंट) आध्यात्मिकता की दृष्टि से कुरान और इस्लाम से संयुक्त है और एक चुने हुए विशिष्ट जनसमूह से संबद्ध है। मूसा अथवा ईसा, अब्राहम या सुलेमान मुस्लिमों में श्रद्धेय नाम हैं। बाइबिल इससे भिन्न है। यह कई ग्रंथों का निचोड़ है। यह यहूदी जनता की समूची कहानी है, और शायद प्राचीन लोगों में यहूदियों के अनुभव सर्वाधिक वैविध्यपूर्ण हैं। यह ऐसी जाति थी जो खूँखार कबीलों से घिरी थी और जो स्वयं भी कम खूँखार न थी। कभी कभी उन्हें नीचा दिखाया गया, विजित किया गया और गुलाम भी बनाया गया। इस जाति ने कभी अपने शत्रुओं को विजित किया तथा उनकी शक्ति आजमाई, फिर भूमिसात् कर डाला (सैमुअल परिच्छेद 8:2)।
 
यह एक ऐसी ही जनता की आकांक्षा और प्रेरणा तथा जय और पराजय है जिसका वर्णन बाइबिल में अद्भुत सजीवता के साथ किया गया है। उसने हमें अपने अब्राहम और मूसा जैसे महान् नेताओं, दाऊद और सुलेमान जैसे महान् राजाओं तथा महान् अवतारों के विषय में ज्ञान कराया है जिन्होंने समय समय पर उत्पन्न होकर अपने दृढ़ वचनों द्वारा अनुचित मार्ग पर आरूढ़ जनता को टोका। सेवानोरोला तक तो यही क्रम रहा है। उन्होंने उनकी हिंसापरायण वृत्ति को स्वयं भोग लिया, आलस्य और क्रूरता की निंदा की जिसकी ओर जनता स्वभावत: अभिमुख थी। बाइबिल (प्राचीन धर्मनियम) ने अब्राहम सरीखे रक्तपिपासु, भयंकर हिंसक राजाओं और असभ्य रानियों के विषय में भी दर्शाया है। यह जनता की ऐतिहासिक घटनाओं और तिथियों की संहिता है। किसी ग्रंथ की अपरिहार्य लघु सीमाओं में यह वस्तुत: एक जातीय इतिहास होते हुए भी आश्चर्यचकित कर देनेवाले सत्यों से परिपूर्ण हैं।
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यह केवल इसीलिए ही नहीं कि ईसाई धर्मगुरु अपने विशेषाधिकार की स्थिति बनाए रखना चाहते थे, यद्यपि वहाँ इसकी अधिकता थी, वे डरते यह थे कि कहीं बोलचाल की भाषा में अनूदित होने से उसके वचन ईश्वरीय वचनों की शक्ति और आशय न खो दें। केवल एक चिरपरिचित मुहावरा पूज्य भाव और भक्ति को उत्तेजित करनेवाला अत्युत्तम माध्यम नहीं है अथवा अनिवार्य रूप से गहन सत्यों का सर्वोपरि संप्रेषक नहीं है।
 
किसी न किसी प्रकार चर्च के दुराचरण से ही धर्म और धार्मिक संस्थान में नया संघर्ष आरंभ हो गया। इस अवधि में, साथ ही साथ भूमध्यसागर के पूर्वी तटों पर एक नई शक्ति का उदय हो रहा था, और इस्लाम के उमड़ते ज्वार के पूर्व अनेक ईसाई मतावलंबी पश्चिम की ओर बढ़ चढ़ आए थे। यद्यपि वास्तविक पुनर्जागरण कई दशकों बाद आया तथापि ईसाई धर्म के ये विद्वान् और उपासक उसके अग्रदूत थे। उन्होंने लोगों को अनिर्दिष्ट उत्तेजनाओं से भर दिया।
 
इंग्लैड में पहले पहल अपनी आवाज बुलंद करनेवाले "लोलार्ड" थे। यह एक संप्रदाय था जो जनता में ईसा मसीह के उपदेशों की शिक्षा देता था और चर्च तथा मठ के विचार का विरोध करता था। उनका नेता विक्लिफ़ अद्भुत साहस और पांडित्यसंपन्न व्यक्ति था। उसने अनुभव किया कि विचारपरिवर्तन के लिए लोगों को ईसा के उपदेशवचनों की जानकारी आवश्यक है। इसके लिए जनभाषा में बाइबिल का अनुवाद आवश्यक हो गया। इस प्रकार उस काल की नवीन चेतना विक्लिफ़ की आवाज में ध्वनित हुई।