"बालविकास": अवतरणों में अंतर

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जन्म से लेकर पाँच वर्ष की अवस्था शैशव अवस्था कही जाती है। छह वर्ष की अवस्था से ही बाल्यकाल माना गया है। बाल्यकाल स्कूल जाने की अवस्था है। यह काल 10, 11 वर्ष तक माना गया है। बाल्यकाल में बालक अपने शरीर की परवाह ठीक प्रकार से कर सकता है और दूसरों के साथ ठीक व्यवहार कर लेता है। वह चलते चलते अचानक गिर नहीं पड़ता। ऊँची जगहों पर चढ़ जाता है और वहाँ से उतर आता है। इस काल में बालकों को कूदना, फाँदना, दौड़ना, सभी बातों में मजा आता है। जहाँ शिशु अपनी उँगुलियों का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता, वहाँ बालक उनसे बहुत कुछ काम ले सकता है। वह अपने कपड़े, जूते, स्वयं पहन सकता है। बालों में कंघी कर सकता है और स्वयं स्नान कर सकता है। इन सब कामों को वह बड़े लोगों से सदा सीखता रहता है।
 
पाँच वर्ष के शिशु में खेलने की प्रवृत्ति होती है। वह अनेक प्रकार की वस्तुएँ खेल के लिए चाहता है। ऐसे बच्चों के लिए मैकिनो, और प्लैस्टिसीन अथवा गीली मिट्टी बहुत उपयोगी होती है। वह अनेक प्रकार की चित्रकारी करता है। अब वह जो चित्र बनाता है, वे प्राय: सार्थक होते हैं।
 
छह वर्ष की उम्र तक बच्चे का बौद्धिक विकास काफी हो जाता है। वह गिनती का अर्थ समझने लगता है। 20 तक गिनती सरलता से गिन लेता है और 20 पदार्थों को गिन भी लेता है। पाँच वर्ष की अवस्था तक बच्चे को पहाड़े का अर्थ नहीं आता। जो भी उसे रटाया जाए वह रट लेता है। इस समय बच्चा पुस्तक पढ़ने की चेष्टा करता है, परंतु उसका बहुत कुछ पढ़ना सार्थक नहीं होता। उसका शब्दकोश 2,500 शब्दों का हो जाता है। उसकी भाषा में केवल सरल वाक्य नहीं रहते, वरन् मिश्रित और जटिल वाक्य भी रहते हैं। भाषा के विकास के साथ साथ उसके विचारों में भी पर्याप्त विकास होता है। इस उम्र का बालक कालबोधक शब्दों को ठीक से काम में लाता है। उसका कार्य कारण के आधार पर सोचना अभी विकसित नहीं होता।