"बेरियम": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
बेरियम धातु प्रकृति में शुद्ध रूप में नहीं मिलती। इसके प्रसिद्ध खनिज कार्बोनेट लवण, अर्थात् विदराइट (witherite), और सल्फेट लवण, अर्थात् बाराइटीज के रूप में मिलते हैं। थोड़ी मात्रा में यह धातु बेराइटो कैल्साइट, बेराइटो सेलिसटाइन और अन्य सिलिकेट लवणों में भी मिलती है। सिलोमेलेन (Psilomelane), अर्थात् बेरियम मैगनेटाइट, भी इसका एक खनिज है। भारत में बराइटीज खनिज बहुत पाया जाता है। मद्रास के अर्नूल और अलवर क्षेत्र इसके लिए प्रसिद्ध है।
 
बेरियम का [[ऑक्सीजन]] के प्रति इतना आकर्षण है कि शुद्ध धातु को प्राप्त करना बड़ा कठिन हो गया है। सन् 1808 में [[डेवी]] ने बेरियम संरस तैयार किया। इस संरस को सुखाकर और फिर इसके पारे का आसवन कर बेरियम धातु तैयार की। इस विधि में दो कठिनाइयाँ आती हैं। एक तो सरंस में पानी पूर्णत: सुखा लेना आवश्यक है, दूसरे ऊँचे ताप पर भी बेरियम से पारा पूर्णत: अलग नहीं होता। सन् 1901 में गुंट्ज (Gunts) ने 1,200 डिग्री सें. पर बेरियम ऑक्साइड का ऐल्यूमिनियम चूर्ण द्वारा अपचयन करके बेरियम प्राप्त किया। इसी ताप पर सी. मैटिग्नॉन (Matignon) ने निर्वात में फेरोसिलिकन (95 प्रतिशत [[सिलिकन]]) के साथ अपचयित कर 98.5 प्रतिशत शुद्ध बेरियम का आसवन किया। आज भी ये ही विधियाँ प्रयोग में आती हैं।