"मनु": अवतरणों में अंतर

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[[महाभारत]] में ८ मनुओं का उल्लेख है। [[शतपथ ब्राह्मण]] में मनु को श्रद्धादेव कहकर संबोधित किया गया है। [[श्रीमद्भागवत]] में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। श्वेत वराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है। महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस [[पृथ्वी का हिन्दू वर्णन|सप्तद्वीपवती पृथ्वी]] पर राज्य किया। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। इन्हीं ने [[मनुस्मृति]] नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो आज मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। उसके अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उस काल में वर्ण का अर्थ रंग होता था और आज जाति।
 
प्रजा का पालन करते हुए जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकान्त में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ [[नैमिषारण्य]] तीर्थ चले गए लेकिन उत्तानपाद की अपेक्षा उनके दूसरे पुत्र राजा प्रियव्रत की प्रसिद्धि ही अधिक रही। स्वायम्भु मनु के काल के ऋषि [[मरीचि]], [[अत्रि]], [[अंगिरस]], [[पुलह]], [[कृतु]], [[पुलस्त्य]], और [[वशिष्ठ]] हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया।
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