"मराठी साहित्य": अवतरणों में अंतर

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रामदास का साहित्य परमार्थ के साथ साथ प्रापंचिक सावधानता का तथा समाजसंघटन का उपांग है। [[छत्रपति शिवाजी]] महाराज के गुरु होने के कारण उनके चरित्र की उज्वलता बढ़ गई। फिर भी उनके द्वारा प्रयत्नवाद, लोकसंग्रह, दुष्टों के दलन इत्यादि के संबंध में दिए गए बोध के कारण उन्हें स्वयं ही वैशिष्ट्य प्राप्त हुआ है। दासबोध, मनाचे श्लोक, करुणाष्टक आदि उनके ग्रंथ परमार्थ के विचार से परिपूर्ण हैं। उनके कतिपय अध्यायों के विषय राजनीतिक विचारों से प्रभावित हैं।
 
तुकाराम रामदास के कालखंड में वामन पंडित, रघुनाथ पंडित, सामराज, नागेश, तथा विट्ठल आदि शिवकालीन आख्यानकर्ता कवियों की एक लंबी पंरपरा हो गई। शब्दचमत्कार, अर्थचमत्कार, नाद माधुर्य, और वृत्तवैचिय इत्यादि इन आख्यानों की विशेषताएँ हैं। वामन नामक पंडित की यथार्थदीपिका गीताटीका उनकी विद्वत्ता के कारण अर्थगंभीर व तत्त्वांगप्रचुर हो गई है। स्वप्न में तुकाराम का उपदेश प्राप्त कर लेनेवाले महीपति प्राचीन मराठी के विख्यात संत चरित्रकार हो गए हैं। कृष्णदयार्णव का "हरिवरदां" तथा श्रीधर कवि के हरिविजय, रामविजय, आदि ग्रंथ सुबोध व रसपूर्ण होने के कारण आबाल वृद्धों को बहुत पंसद आए। इन परमार्थप्रवृत्त पंडितों की परंपरा में मोरोपंत का विशिष्ट स्थान है। इनके रचित आर्या भारत, 108 रामायण तथा सैकड़ों फुटकर काव्यरचनाएँ भाषाप्रभुत्व एवं सुरस वर्णनशैली के कारण विद्वन्मान्य हुई हैं।
 
[[पेशवा|पेशवाओं]] के समय में "शाहिरी" (राजाश्रित) कवियों ने मराठी काव्य की अलग ही रूप रंग प्रदान किया। रामजोशी, प्रभाकर होनाजी बाला इत्यादि कवियों ने संत कवियों के अनुसार परमार्थ पर काव्यरचना न करते हुए समकालीन इतिहास सामग्री ग्रहण कर वीरसपूर्ण काव्य का निर्माण किया। इन कवियों द्वारा रचित "पोवाडा" (पँवाडा, कीर्तिकाव्य) साहित्य महाराष्ट्र के इतिहास का ओजस्वी अंग है। इन्हीं राजकवियों के लावणी साहित्य में स्त्रीपुरुषों के श्रृंगार का भव्य वर्णन है। यद्यपि इनमें से कितनों ने ही वैराग्य पर भी "लावणी" साहित्य का निर्माण किया है, फिर भी इनका वैशिष्ट्य पोवाड़े तथा श्रृंगारिक लावणियों में ही व्यक्त हुआ है।