"मानव का पोषण नाल": अवतरणों में अंतर

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'''[[ग्रासनली]]''' (oesophagus) मांसपेशी से निर्मित नौ या दस इंच लंबी नली है, जो ग्रसनी के निचले भाग से आरंभ होकर गले से वक्ष में होती हुई मध्यपट (diaphragm) के छिद्र से निकलकर उदर में पहुँचती और आमाशय में मिल जाती है। इसका अंतिम एक इंच का भाग उदर में रहता है।
 
'''[[आमाशय]]''' (stomach) भी मांसपेशी द्वारा निर्मित एक खोखला थैला है, जिसमें ग्रासनली से आहार पहुँचता है और उसका पाचन होता है। यह थैला उदर के ऊपरी भाग में बाईं ओर स्थित है। इसका ऊपर का चौड़ा भाग फंडस (fundus) कहलाता है तथा आहार के भरने पर और ऊपर की ओर की विस्तृत हो जाता है। इसके ऊपर जठर द्वार (cardiac orifice) है, जिसमें ग्रासनली खुलती है। आमाशय का दूसरा सिरा नलिका के समान हो गया है, जो जठरनिर्गम (pylorus) कहा जाता है। यह वास्तव में आधा इंच लंबा छिद्र है, जिसके चारों ओर की पेशियाँ मंडलाकार संवरणी पेशी (sphincter) बना देती हैं। खाली होने पर सारा आमाशय, और विशेषकर यह भाग, एक नली के समान दिखाई देता है, किंतु आहार से भर जाने पर आमाशय विस्तार करके सेब के आकार का हो जाता है और जठरनिर्गम भी चौड़ा हो जाता है। आमाशय के ऊपरी जठर द्वार से जठरनिर्गम तक जानेवाला किनारा नतोदर (concave) होता है और लघु वक्र (lesser curvature) कहलाता है। नीचे का किनारा उन्नतोदर होता है और बृहद्वक्र कहा जाता है। उदर में आमाशय के सामने मध्यपट और यकृत हैं। खाली अवस्था में संकुचित होने पर अनुप्रस्थ बृहदांत्र (transverse colon) भी सामने आ जाता है। उसके पीछे की ओर आमाशय, प्लीहा (spleen), बायाँ वृक्क (kidney), बायाँ अधिवृक्क (suprarenal) बृहदांत्र और बृहदांत्र योजनी स्थित हैं, जिनसे आमाशय आधार (stomach bed) बनता है। आमाशय में महाधमनी की जठरशाखाएँ (gastric branches) रक्त पहुँचाती हैं।आमाशय की सूक्ष्म रचना के निरीक्षण से पता चलता है कि इसमें चार स्तर होते हैं। सबसे भीतर श्लेष्मल कला का स्तर रहता है, जिसमें सिकुड़नें पड़ी रहती हैं। इसी स्तर में वे अनेक ग्रंथियाँ रहती हैं जिनसे आमाशय रस (gastric juice) बनता है। श्लेष्मल कला के बाहर वह प्रांत है जो अधोश्लेष्मल (submucous) कहलाता है। इसमें रक्तवाहिकाओं की शिराएँ तथा पायसनियों की शाखाएँ स्थित हैं। इसके बाहर तीन स्तरों में अनैच्छिक पेशीतंतु स्थित हैं। भीतर के तंतु तिर्यक्‌ या टेढ़ी (oblique) दिशा में एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते दिखाई पड़ते हैं। इनके बाहर वृत्ताकार (circular) तंतुओं का स्तर है, जो आमाशय को चौड़ाई की दिशा में घेरे हुए हैं। इस स्तर से बाहर पेशीतंतु लंबाई की (longitudinal) दिशा में जाते दिखाई पड़ते हैं। ये तीनों पेशीस्तर जब संकोच करते हैं तब आमाशय के भीतर का आहार मथ सा जाता है और उसके कण तथा आमाशय रस का घनिष्ठ संपर्क हो जाता है। पेशी-तंतु-स्तर के बाहर आमाशय पर पेरिटोनियम (peritoneum) कला का एक स्तर चढ़ा रहता है।
 
आमाशय के जठरनिर्गम के दूसरी ओर से '''[[क्षुदांत्र]]''' (small intestine) प्रारंभ होता हैं, जिसका 10 से 12 इंच का अर्धवृत्ताकार मुड़ा हुआ भाग ग्रहणी (duodenum) है। इसके मोड़ के भीतर अग्न्याशय ग्रंथि का सिर रहता है। इसका पहला अनुप्रस्थ भाग पित्ताशय के पीछे रहता है। दूसरा भाग नीचे को चला जाता है। इसी भाग में पित्तवाहिनी और अग्न्याशयवाहिनी (pancreatic duct) नलिकाएँ एक ही छिद्र द्वारा खुलती हैं। तीसरा भाग फिर [[महाधमनी]] और [[महाशिरा]] के सामने, भीतर या पृष्ठवंश की ओर को मुड़ता है और चौथा भाग दूसरे कटि कशेरुक तक ऊपर को चढ़ सा जाता है, जहाँ वह क्षुद्रांत्र (Jejunum) के साथ मिलकर ग्रहणी क्षुद्रांत्र-मोड़ (duodeno-jejunal flextur) बनाता है।