"वाक्यपदीय": अवतरणों में अंतर
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तीसरे कांड में "पदविचार" का प्रक्रम किया गया है। अर्थ द्वारा पदों की परीक्षा होती है। न्याय-वैशेषिक के मत में आकाश में सामान्य (जाति) नहीं है किंतु वाक्यपदीय के अनुसार मुख्य या औपाधिक देशभेद के कारण आकाश में भी जाति है (3.15-16)। "ज्ञान" स्वप्रकाश है। विषयज्ञान तथा उसका परामर्शज्ञान, ये दोनों भिन्न हैं। इस कांड में 13 खंड हैं जिनमें 450 से अधिक कारिकाओं में दार्शनिक रूप से व्याकरण के पदार्थों का विशद विचार किया गया है। यह कांड खंडित ही है।
== टीकाएँ==
वाक्यपदीय पर [[भूतिराज]] के पुत्र हेलाराज ने बहुत सुंदर तथा विस्तृत टीका लिखी है। आधुनिक समय में भी कुछ विद्वानों ने टीका लिखी है किंतु इन सबकी दृष्टि आगमिक न होने के कारण वाक्यपदीय का वास्तविक ज्ञान नहीं प्राप्त होता। इसकी बहुत सी कारिकाएँ नष्ट हुई मालूम होती हैं। [[युधिष्ठिर मीमांसक]] तथा [[साधूराम]] ने लुप्त कारिकाओं पर कुछ विचार किए हैं। व्याकरण के आगमिक रूप के विचार में इस ग्रंथ के समान अन्य ग्रंथ बहुत नहीं हैं।
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