"वाचकन्वी गार्गी": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अंगराग परिवर्तन।
पंक्ति 44:
तब याज्ञवल्क्य ने कहा- गार्गी! अब इससे आगे मत पूछो। इसके बाद महर्षि याज्ञवक्ल्यजी ने यथार्थ सुख वेदान्ततत्त्‍‌व समझाया, जिसे सुनकर गार्गी परम सन्तुष्ट हुई और सब ऋषियों से बोली-भगवन्! याज्ञवल्क्य यथार्थ में सच्चे ब्रह्मज्ञानी हैं। गौएँ ले जाने का जो उन्होंने साहस किया वह उचित ही था। गार्गी परम विदुषी थीं, वे आजन्म ब्रह्मचारिणी रहीं!
 
== सन्दर्भ ==
<references/>
 
== बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.meribitiya.com/my-space/312-despite-geting-defeat-vachkanvi-gargi-won.html हार कर भी जीत गयी विनम्र और विदुषी वाचकन्वी गार्गी]