"विरचना": अवतरणों में अंतर

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|school_tradition = महाद्वीपीय दर्शंसास्र
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== प्रभाविक कृतियाँ==
डेरिडा के विरचना के सिद्धान्त के पीछे अनेकों अन्य दार्शनिकों के कृतियों का प्रभाव है। उनके नीव इन अनेक कृतियों में पाए जा सकते है। एडमंड हुस्सेरल के लेखन से प्रेरित होकर डेरिडा ने घटनात्मक और संचारात्मक दृष्टिकोण का मिश्रण किया। फ्रीडरिच नीटशि, एक अस्तित्ववादी, के दार्शनिक दृष्टिकोण, डीकंस्ट्रक्शन के अग्रदूत बने। डीकंस्ट्रक्शन के सूत्रीकरण और डीफरैंस के विचार योजना में आंद्रे लेहुआ गुहँ का मअहत्वपूर्ण योगदान है। फरदिनंद दी सौसयौर के संरचनावादिक सिद्धांतों का डीकंस्ट्रक्शन और पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म (संरचनावाद के अनुसरण) के विकास में बड़ा योगदान हे।
== डेरिडा के बारे मे==
डेरिडा ने लिखना तब शुरू किया जब फ्रांसीसी बौद्धिक परिदृश्यों में प्रतिभास और संरचनावाद दृष्टिकोण मे बढता दरार साफ़ नज़र आने लगा था। घटनात्मक दृष्टिकोण उसे कहते हें जब एक अनुभव को उसके जन्मोत्पत्ति द्वारा समझा जाता हें। संरचनावादिक दृष्टिकोण कहता है की किसी भी वास्तु की जन्मोत्पत्ति के अध्ययन से सिर्फ तथ्य का पता लग सकता हें, मगर उसके संरचना के अध्ययन से उसके अनुभव के गहराईयों का आभास होता हें।<ref name=book>{{cite book|last=Chandra|first=Joseph|title=Classical to Contemporary Critical Theory - A Demystified Approach|date=10 February, 2014|publisher=Atlantic Publisher and Distributors Pvt Ltd.|location=New Delhi|isbn=9788126913497|pages=55 - 67}}</ref>
सन् १९५९ मे डेरिडा इस विचारधारा पर प्रश्न उठाते हुए पूछते हें की क्या हर एक संरचना की एक उत्पत्ति स्थल नहीं होती, और क्या एक उत्पत्ति स्थल की मौजूदगी ही एक संरचना की होने ही सूचना नहीं देती? इस कथन द्वारा डेरिडा कहना चाहते हें की प्रतिभासिक और संरचनात्मक दृष्टिकोण दोनों ही किसी भी वास्तु या सिद्धान्त को पूरी तरह समझने के लिए आवश्यक हें। वह कहते हें की एक संरचना को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक हम उसकी उत्पत्ति के बारे मे न जान लें और यह ना समझ लें की वह उत्पत्ति स्थल अपने आप मे ही एक बहुत जटिल और संरचनात्मक हें। डेरिडा कहतें हें की यही डायक्रोनिस्म (वक़्त के साथ बदलता हुआ) हमें टेक्शुअलिटी (लेखन मे इस्तेमाल किये जाने वाली भाषा जो की बोली से अलग होती हें) के करीब ले जाती हें।<ref name=book>{{cite book|last=Chandra|first=Joseph|title=Classical to Contemporary Critical Theory - A Demystified Approach|date=10 February, 2014|publisher=Atlantic Publisher and Distributors Pvt Ltd.|location=New Delhi|isbn=9788126913497|pages=55 - 67}}</ref>
== सौसयौर और संरचनावाद ==
डीकंस्ट्रक्शन के सिद्धान्तों को आज पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म का एक उपखंड मन जाता है। इस सिद्धान्त का डेरिडा ने सौसयौर के संरचनावादी सिद्धान्त से व्युत्पन्न किया है। सौसयौर के मुताबिक़ शब्दों का उनके अनुरूपित वस्तुओं से कोई प्राकृतिक सम्बन्ध नहीं हें। वह कहते हें की एक शब्द सिर्फ एक संकेत चिन्ह की तरह काम करता हें जो हमे एक वास्तु के तरफ इशारा करता है। एक चिन्ह दो भागों का बना होता हें – सिग्नीफाईड (वह संकल्पना जिसकी तरफ इशारा किया गया है) और सिग्नीफाईयर (वचक - बोलचाल ध्वनी या तो लिखित अक्षर)।
 
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सौसयौर के मुताबिक एक सिग्नीफाईड और एक सिग्नीफाईयर के बीच का रिश्ता प्राकृतिक नहीं मात्र मनमाना है। हर शब्द को पहले से एक मतलब दिया गया है और इस मतलब का उस वास्तु के वास्तविक रूप से कोई सम्बन्ध नहीं होता। हलाकि क्योंकि हर शब्द से एक अर्थ जोड़ा गया हें उन दोनों का रिश्ता स्थिर मन जाता हें।
== पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म और विरचना==
डेरिडा इस स्थिर रिश्ते को चुनौती देते हुए कहते हें की चूँकि एक शब्द का अर्थ कभी उस शब्द के अन्दर कैद नहीं किया जा सकता, और उसका मतलब तभी समझा जा सकता हें जब उसे बाकी शब्दों के अंतर मे देखा जाए, इसीलिए एक शब्द का अर्थ सम्भंदित रूप मे ही समझा जा सकता हें। वह कहते हें की हम लाल रंग को सही ढंग से पहचान पातें हें क्यूंकि वह नीले या हरे रंग से अलग है। हम इस अंतर को पहचानतें है और इसीलिए उन्हें अलग अलग रंगों के रूप मे जानते हैं।<ref name=book>{{cite book|last=Chandra|first=Joseph|title=Classical to Contemporary Critical Theory - A Demystified Approach|date=10 February, 2014|publisher=Atlantic Publisher and Distributors Pvt Ltd.|location=New Delhi|isbn=9788126913497|pages=55 - 67}}</ref>
डेरिडा के मुताबिक हर वास्तु का एक द्विचर विपरीत होता हें, जैसे उजाला और अँधेरा, सफेद और काला, अच्छाई और बुरे इत्यादि। इसे और विस्तार मे समझाते हुए वह कहते हें की एक शब्द का पूरा अर्थ कभी उस शब्द मे समाया नहीं होता है। और चूँकि पूरा अर्थ नहीं समाया है हम यह कह सकते हें की अर्थ की अनुपस्थित है। ततः एक द्विचर विपरीत को डीकंस्ट्रक्ट करने के लिए आवश्यक है की हाशिए अवधि (मारजिनलाईजड् टर्म) के महत्व को पहचाना जाये, क्योंकि इसी शब्द के आधार पर विशेषाधिकृत अवधि को अर्थ मिलता है। एक द्विचर अर्थ उस बात कि भी निशानी हे जो अनुपस्थित है। हम एक कुर्सी को कुर्सी मानते हें क्योंकि वह एक मेज़ से अलग है। इस अनुपस्थिथि को डेरिडा डिफ्फेरांस (différance) का नाम देते हें। उनके मुताबिक डिफ्फेरांस बनता है डिफरेंस (अंतर) और डेफेर्रल (अर्थ को टालना) के संघटन से। एक चिन्ह का अर्थ हमेशा उससे परे होता हें। अतः एक चिन्ह पूरी तरह अपने मे समाया नहीं होता, वह हमेशा एक दुसरे चिन्ह या वास्तु पे निर्भर रहता हें, अपने से परे की तरफ इशारा करता है। इसी वजह से डेरिडा कहतें हें की एक चिन्ह का पूरा मतलब उसके द्विचर विपरीत (डिफरेंस) और उसके अर्थ के टालने (डेफेर्रल) के आधार पर ही समझा जा सकता है, और अर्थ मात्र एक हलके निशाने (ट्रेस) की तरह रह जाता है।<ref name=wikideconstruction>{{cite web|title=Deconstruction|url=https://en.wikipedia.org/wiki/Deconstruction|publisher=Wikipedia|accessdate=10 February 2014}}</ref>
फलतः डेरिडा कहते हें की एक ट्रांससेंडेंटल (उत्तोतम) सिग्नीफाईड (हर शब्द के लिए एक ऐसी वास्तु या चिन्ह जो और किसी भी वास्तु या चिन्ह के तरफ इशारा न करे) ढूँढने की आवश्यकता हें, अर्थात एक ऐसा चिन्ह या सिग्नीफाईयर जिसको अपने अर्थ के लिए दुसरे सिग्नीफाईयर पर निर्भर न होना पड़े। हालांकि यह साफ़ ज़ाहिर है की यह मुमकिन नहीं हो सकता।
== विरचना की परिभाषा==
डेरिडा डीकंस्ट्रक्शन की परिभाषा कुछ इस तरह देतें हें (हालाँकि वह हमेशा डीकंस्ट्रक्शन के लिए कोई एकमात्र सही परिभाषा देने से हमेशा कतराएं है) – डीकंस्ट्रक्शन एक गंभीर रूख या पढ़ने और विश्लेषण की रणनीति है जिसे साहित्य, भाषा वैज्ञानं, दर्शनशास्र, कानून और स्थापत्य मे लागू किया जा सकता है। यह भाषा का एक सिद्धान्त है, पढ़ने का एक तरीका है जो हरदम कोशिश करता है की एक कृति के सीमा, हाशिया, जुटना, नियत अर्थ, सच्चाई और पहचान को खंडित करता है, नष्ट करता है, और किसी भी धारणा को पलट देता है। डीकंस्ट्रक्शन प्रश्न करता है उन हर तरह की कृतियों से और दिखाता है की वह सब ऐसे तरीके और प्रणालियों पे आधारित है जो की कृतिम रूप से बनाये गए है और उनमे कोई परम सत्य नहीं है। डीकंस्ट्रक्शन खारिज करता है उस जोड़ करने की प्रणाली (टोटलाईजेशन) को जो कोशिश करता है की हर अर्थ को उसी कृति मे समां लिया जाये।<ref name=book>{{cite book|last=Chandra|first=Joseph|title=Classical to Contemporary Critical Theory - A Demystified Approach|date=10 February, 2014|publisher=Atlantic Publisher and Distributors Pvt Ltd.|location=New Delhi|isbn=9788126913497|pages=55 - 67}}</ref>
== व्याकरण का अध्ययन (ऑफ़ ग्राममटोलोजी ==
डीकंस्ट्रक्शन का ज़िक्र डेरिडा पहली बार अपने कृति ऑफ़ ग्राममटोलोजि (व्याकरण का अध्ययन) मे करते हैं, जो की उन्होंने सन् १९६७ मे लिखी थी। ग्राममटोलोजि का अर्थ, डेरिडा के मुताबिक है लिखित भाषा का विज्ञानं। इस कृति मे डेरिडा कहतें हें की जब भाषा को लेखन के रूप मे समझा जाता है तब उसके अर्थ का जो हाल होता है, इसे हम डीकंस्ट्रक्शन कहतें हें। कहने का मतलब यह हुआ की चाहे लिखित हमारा ही हो मगर उन शब्दों को अर्थ हमने नहीं दिए हें, वह पहले से ही दुनिया मे मौजूद थे। सालों से उन शब्दों का अर्थ वही रहा है, इसीलिए भाषा हमारे बस मे कभी नहीं होती। डीकंस्ट्रक्शन अस्तित्व मे है क्योंकि अर्थ मे अनिवार्य रूप से व्याख्या, समझौता वार्ता और अनुवाद कुछ कुछ मात्र मे उपलब्ध होतें है।
आगे डेरिडा यह भी कहतें हें की संरचना पर योजन करने वाले एक मध्यबिंदु का पूर्वानुमान लगते हें, लेकिन यह मध्यबिंदु विरोधाभास से संरचना के दोनों अंदर और बाहर रहता है। डेरिडा कहतें हें की यह मध्यबिंदु एक काल्पनिक सोच है। मध्यबिंदु संरचना को नियंत्रित करता है किन्तु अपने ही निर्मित क़ानून का पालन नहीं करता। उदाहरण के रूप मे – भगवान् इस श्रृष्टि के रचेता हें मगर वह इस दुनिया मे नहीं रहते, वह इस दुनिया के परे हें। वह यह भी कहतें हें की एक संरचना के मध्यम्बिंदु से मुक्त होना न मुमकिन है क्योंकि उसे हम हमेशा दुसरे मध्यबिंदु के लिए बदला जा सकता है, जेसे की भगवन जो की धर्मशास्त्र के मध्यस्थल मे है उन्हें हम पिता या आत्मा से बदल सकते हें। अतः डीकंस्ट्रक्शन हमे दिखता है की मालुम होने वाले स्थिर संस्थाएं हमेशा वेसी नहीं होतीं जेसे हमे दीखता हें। डीकंस्ट्रक्शन उपस्थिथि को अपना मुद्दा बना लेती है। उपस्थिथि एक इच्छा है स्थिर, निश्चित और एकात्मक अर्थ की मध्यबिंदु के लिए. इसे हम लोगोसेंट्रिस्म (लोगो मतलब यूनानी मे कारन, सोच या शब्द कहा जा सकता है। जब यह सब मध्यबिंदु मन जाए टो उसे लोगोसेंट्रिस्म कहते हें।